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वनाधिकार कानून को कमजोर कर रही सरकार

जागरण संवाददाता, देहरादून: चेतना आंदोलन कोर कमेटी के सदस्यों ने केंद्र सरकार पर वनाधिकार कानून 2006

By Edited By: Published: Mon, 24 Nov 2014 07:57 PM (IST)Updated: Mon, 24 Nov 2014 07:57 PM (IST)
वनाधिकार कानून को कमजोर कर रही सरकार

जागरण संवाददाता, देहरादून: चेतना आंदोलन कोर कमेटी के सदस्यों ने केंद्र सरकार पर वनाधिकार कानून 2006 को कमजोर करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि कुछ पूंजीपतियों के हित को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार जनपक्षीय कानून में फेरबदल करने पर आमदा है। इससे उत्तराखंड के आमजन के हितों पर भी असर पड़ेगा।

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शनिवार को लैंसडौन चौक स्थित एक रेस्टोरेंट में पत्रकारों से बातचीत में चेतना आंदोलन की कोर कमेटी के सदस्य शंकर गोपाल कृष्णन, त्रेपन सिंह चौहान व विनोद बड़ोनी ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय और पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कोशिश की जा रही है कि वन क्षेत्रों में परियोजना लगाने के लिए ग्रामसभा की अनुमति को समाप्त कर दिया जाए। जबकि, ग्रामसभा वाले वन क्षेत्रों पर पूरा अधिकार ग्रामसभा का होता है और उसकी इजाजत के बिना कोई कार्य नहीं किए जा सकते। वनों पर ग्राम समाज का अधिकार हो इसके लिए इतिहास अनेक संघर्षो से भरा पड़ा है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की वन पंचायत देश के लिए एक उदाहरण है। लेकिन, मोदी सरकार ने 31 जुलाई 2014 को एक आदेश के जरिये लघु वनोपज को निकालने का अधिकार वन सुरक्षा समिति को दिया है। यह पूरी तरह से अव्यवहारिक है। उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2014 में पर्यावरण मंत्रालय ने खास उत्तराखंड को ध्यान में रखते हुए आदेश दिया था कि जिन वन क्षेत्र में आदिवासी नहीं हैं वहां जिलाधिकारी आदेश दे सकता है कि उक्त क्षेत्र में वनाधिकार कानून लागू नहीं होगा। ऐसी स्थिति में लोगों की जमीन और आजीविका छिन सकती है। उन्होंने बताया कि वन क्षेत्रों पर ग्रामसभा के अधिकार के लिए 18 और 19 जनवरी को चेतना आंदोलन की बैठक की जाएगी और इसके बाद पर्वतीय क्षेत्रों में जागरुकता रैलियों का आयोजन किया जाएगा।


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