उत्तराखंड में अलकनंदा हाइड्रो प्रोजेक्ट पर तलवार
केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट में खामियों का जिक्र करते हुए जन जीवन की सुरक्षा के मद्देनजर इस प्रोजेक्ट को दी गई स्वीकृति निरस्त करने के लिए प्रदेश सरकार को विचार करने को कहा है।
देहरादून, [विकास धूलिया]: पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर में स्थित अलकनंदा पावर प्रोजेक्ट (जल विद्युत परियोजना) के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। लगभग साढ़े तीन हजार करोड़ लागत के इस प्रोजेक्ट में विद्युत उत्पादन भी आरंभ हो चुका है मगर केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट में तमाम खामियों का जिक्र करते हुए श्रीनगर व आसपास के जन जीवन की सुरक्षा के मद्देनजर अब इस प्रोजेक्ट को दी गई स्वीकृति निरस्त करने के लिए प्रदेश सरकार को विचार करने को कहा है।
330 मेगावाट क्षमता का अलकनंदा हाइड्रो प्रोजेक्ट काफी लंबे समय से लटका रहा। परियोजना निर्माण की योजना करीब 38 साल पहले बनी थी। इसके निर्माण के लिए कई कंपनियां आगे आईं, लेकिन सभी ने थोड़ा बहुत काम कर बीच में ही छोड़ दिया। इसके बाद वर्ष 2005 में जीवीके कंपनी ने इसका जिम्मा लिया।
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वर्ष 2013 में प्रसिद्ध मां धारी देवी मंदिर के स्थान को परियोजना के दायरे में आने के कारण मंदिर को ऊपर उठाने का निर्णय लिया गया, जिसका काफी विरोध भी हुआ। वर्ष 2015 में इस प्रोजेक्ट के पूर्ण होने के बाद विद्युत उत्पादन आरंभ हुआ।
दरअसल, मई 2015 में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमाभारती को इस प्रोजेक्ट के संबंध में एक पत्र लिखा था। इस पत्र में मुख्यमंत्री ने लिखा, 'मां धारी देवी को केदारखंड भूभाग की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। यह धारणा है कि भगवान शिव ने स्वयं उन्हें अलकनंदा के स्थल पर स्थापित किया और इस पवित्र भूभाग की रक्षा का दायित्व उन्हें सौंपा।
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...मंदिर को पूर्व स्थान से हटाने के बाद अनेक ऐसी प्राकृतिक प्रकोप की घटनाएं इस भूभाग में घटित हो रही हैं, जिससे सभी प्रकृति के इस प्रकोपमयी रूप से सहमे हुए हैं। ऐसा लगता है कि मां के मंदिर को वहां से हटाने में मां की सहमति नहीं थी। कुछ मेगावाट विद्युत शक्ति बढ़ाने के लिए लिया गया यह निर्णय मां को स्वीकार नहीं हुआ। मेरे विचार से हमें इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।'
इस पत्र का जवाब केंद्रीय मंत्री उमाभारती ने लगभग तीन महीने पहले नवंबर 2016 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत को भेजा। पत्र में उन्होंने कहा कि गढ़वाल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने श्रीनगर में स्थित अलकनंदा पावर प्रोजेक्ट पर कुछ अपत्तियां लिखकर भेजी थीं। इसकी जांच ऊर्जा मंत्रालय के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण तथा सेंट्रल वाटर कमीशन के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से की।
पत्र में आगे कहा गया है कि इस कमेटी की रिपोर्ट मंत्रालय में मौजूद है। रिपोर्ट में इस पावर प्रोजेक्ट में बहुत सारी खामियां बताई गई हैं। वहां के जनजीवन के लिए यह प्रोजेक्ट भारी संकट का कारण बन सकता है क्योंकि इसे मंजूरी देते समय बहुत सारी खामियों की अनदेखी कर दी गई।
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पत्र में केंद्रीय मंत्री उमाभारती ने मुख्यमंत्री हरीश रावत से आग्रह किया है कि श्रीनगर तथा उसके आसपास के जन जीवन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस पावर प्रोजेक्ट को दी गई राज्य सरकार की स्वीकृति को अविलंब निरस्त करने पर विचार करें। सूत्रों के मुताबिक शासन ने केंद्रीय मंत्री उमाभारती के पत्र के बाद जल विद्युत निगम और ऊर्जा सेल से पूरी रिपोर्ट तलब कर ली है।
दस साल में पूरा हुआ प्रोजेक्ट
श्रीनगर स्थित जीवीके की जल विद्युत परियोजना (330 मेगावाट) का निर्माण वर्ष 2005 में शुरु हुआ था। इसे पूरा होने में दस वर्ष लगे। इस पर करीब 3500 करोड़ रुपये खर्च हुए। मार्च 2015 से इससे उत्पादन शुरू हुआ और उत्तराखंड को रॉयल्टी के रूप में 12 फीसद बिजली मिल रही है। परियोजना के लिए बनाए बांध की कुल ऊंचाई 90 मीटर है, जबकि नदी के तल से ऊंचाई 66 मीटर है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम के निदेशक परिचालन बीसीके मिश्रा का कहना है कि परियोजना बंद किए जाने जैसी कोई जानकारी नहीं है।
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