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इस मंदिर में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही पशुबलि प्रथा होगी खत्‍म

सिद्धपीठ महासू देवता मंदिर हनोल व उनके अन्य भाइयों द्वारा पशुबलि प्रथा का त्याग करने के बाद उनकी बहन बलाणी देवी ने भी पशुबलि का त्याग करने का निर्णय लिया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 29 May 2017 03:32 PM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 05:05 AM (IST)
इस मंदिर में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही पशुबलि प्रथा होगी खत्‍म
इस मंदिर में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही पशुबलि प्रथा होगी खत्‍म

त्यूणी, [जेएनएन]: सिद्धपीठ महासू देवता मंदिर हनोल व उनके अन्य भाइयों द्वारा पशुबलि प्रथा का त्याग करने के बाद उनकी बहन बलाणी देवी ने भी पशुबलि का त्याग करने का निर्णय लिया है। देवी द्वारा देवमाली को दिए गए निर्देश के अनुसार बलाणी देवी मंदिर में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही पशुबलि प्रथा पर शाही स्नान के बाद पूरी तरह पाबंदी लग जाएगी। 

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पशुबलि का त्याग करने के लिए बलाणी देवी की पालकी डेढ़ सौ पदयात्रियों के जत्थे सहित रविवार को महासू मंदिर हनोल पहुंची। शाही स्नान के लिए पहली बार हनोल मंदिर पहुंची बलाणी देवी सोमवार शाम को हनोल से वापस मूल मंदिर चिल्हाड़ गांव लौटेगी।

दो लाख की आबादी वाले जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में महासू देवता की बड़ी मान्यता है। तमसा नदी के तट पर बसे पर्यटन नगरी हनोल में सिद्धपीठ महासू देवता का प्राचीन भव्य मंदिर है। हनोल के ठीक सामने तमसा नदी के उस पार बंगाण के ठडियार गांव में महासू देवता के छोटे भाई पवासी महासू का मंदिर है और हनोल से दस किमी पहले मैंद्रथ गांव में सबसे बड़े भाई बाशिक महासू का मंदिर है। जबकि, सबसे छोटे भाई चालदा महासू समूचे जौनसार-बावर, बंगाण व हिमाचल क्षेत्र में हमेशा भ्रमण करते हैं। 

मान्यता के अनुसार महासू देवता की बहन बलाणी देवी का मूल मंदिर चिल्हाड़ गांव में है। जबकि, दूसरा मंदिर हिमाचल के थितरौली गांव में है। बलाणी देवी को चिल्हाड़, शिलवाड़ा व बाणाधार समेत तीन पंचायतों के सैकड़ों लोग कुलदेवी के रूप में पूजते व मानते हैं। चिल्हाड़ स्थित बलाणी देवी मंदिर में सैकड़ों वर्षों से पशुबलि की प्रथा चली आ रही है। 

सिद्धपीठ महासू मंदिर हनोल, बाशिक महासू मंदिर मैंद्रथ व पवासी महासू मंदिर ठडियार में पशुबलि पर रोक के बाद अब बलाणी देवी मंदिर में भी पशुबलि खत्म होगी। देवमाली के अनुसार बलाणी देवी ने महासू मंदिर हनोल में शाही स्नान के बाद पशुबलि छोडऩे का फैसला किया है। जिसके लिए तीन पंचायत के डेढ़ सौ से ज्यादा लोग रविवार सुबह साढ़े छह बजे चिल्हाड़ स्थित बलाणी देवी मंदिर पहुंचे और देव पालकी को शाही स्नान के लिए हनोल मंदिर ले गए। 

डेढ़ सौ पदयात्रियों के जत्थे सहित शाही स्नान को पहली बार महासू मंदिर हनोल पहुंची बलाणी देवी का मंदिर समिति व कारसेवकों ने गाजे-बाजे के साथ परंपरागत अंदाज में स्वागत किया। चिल्हाड़ निवासी पितांबर दत्त बिजल्वाण, पुजारी लछीराम, देवमाली रोशनलाल व पूर्व जिला पंचायत सदस्य जयदत्त बिजल्वाण ने कहा कि बलाणी देवी के सोमवार को हनोल मंदिर से शाही स्नान कर लौटने के बाद चिल्हाड़ मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया जाएगा। अनुष्ठान संपन्न होने के बाद बलाणी मंदिर में सैकड़ों वर्ष पुरानी पशुबलि प्रथा का अंत होगा। पदयात्रा में बालकराम, बृजेश, करमचंद, श्रीचंद, ह्दय पंवार, मुन्नाराम, मोतीलाल, महिमानंद व दुर्गादत्त आदि शामिल रहे।

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