बैंकों की हड़ताल से 500 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित
बैंकों में क्लीयङ्क्षरग हाउस न लग पाने से करीब 500 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ है। हड़ताल के चलते बैंकों की शाखाओं व क्षेत्रीय कार्यालयों पर ताले लटके रहे।
देहरादून, [जेएनएन]: केंद्र सरकार की श्रमिक और आमजन विरोधी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल उत्तराखंड में भी प्रभावी रही। मंगलवार को कर्मचारियों-अधिकारियों के हड़ताल पर रहने से प्रदेश के बैंकों पर कामकाज पूरी तरह ठप रहा। हड़ताल के चलते प्रदेशभर में करीब पांच सौ करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ। नकदी के लिए लोगों ने एटीएम का सहारा लिया। हालांकि दोपहर बाद अधिकांश एटीएम खाली हो गए। कुछ एटीएम में तो सुबह से ही नो कैश का बोर्ड लगा था।
बैंकों के महासंघ यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के बैनर तले कर्मचारी व अधिकारी यूनियन के नौ घटक हड़ताल में शामिल रहे। अधिकारी व कर्मचारी परेड ग्राउंड में एकत्रित हुए और केंद्र के खिलाफ नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में कर्मचारी एकत्र हुए। उन्होंने गांधी पार्क तक रैली भी निकाली। हड़ताल के समर्थन में प्रदेश के राष्ट्रीयकृत व ग्रामीण बैंकों की दो हजार शाखाओं में कामकाज ठप रहा।
15 हजार कर्मचारी-अधिकारियों के हड़ताल पर जाने से बैंकिंग कार्यों पर व्यापक असर पड़ा। बैंकों में क्लीयङ्क्षरग हाउस न लग पाने से करीब 500 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ है। हड़ताल के चलते बैंकों की शाखाओं व क्षेत्रीय कार्यालयों पर ताले लटके रहे। चेक और ड्राफ्ट का समाशोधन पूरी तरह ठप रहा।
इसके साथ ही नकदी का लेन-देन, आरटीजीएस, नेफ्ट आदि कार्य भी ठप रहे। प्रदर्शन करने वालों में ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स महासंघ के प्रदेश सचिव पीआर कुकरेती, यूबीईयू के संयुक्त सचिव सीके जोशी, एसपी जुयाल, समदर्शी बड़थ्वाल, बीपी सुंद्रियाल, विनय शर्मा, हरिओम रेखी, एमएल नौटियाल, उमेश क्षेत्री, बीके नौटियाल, जेएस चौहान, शार्दुल ढौंढियाल, एमएस घारिया, अनिल कुमार जैन, इंदर सिंह, एसएस रजवाड़, डीएन उनियाल, नवीन कुमार, आदि शामिल थे।
ये हैं प्रमुख मांगें
-सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण न किया जाए
-बैंकों का विलय व पुर्नगठन न किया जाए
-डूबे बैंक ऋणों की वसूली के लिए संसदीय समिति की सिफारिशों के अनुसार कार्रवाई हो
-एनपीए रिकवरी को सशक्त कानून बनाया जाए
-एफआरडीआइ बिल को वापस लिया जाए
-बैंकों की ओर से की गई सेवा शुल्क में वृद्धि वापस ली जाए
-बैंक बोर्ड ब्यूरो को समाप्त किया जाए
-नोटबंदी के दौरान बैंकों पर पड़े आर्थिक बोझ की भरपाई करें सरकार
-जीएसटी के नाम पर ग्राहकों से अतिरिक्त शुल्क न वसूला जाए।
-पेंशन संबंधी नियमों में सुधार किया जाए
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