सुमेरु की आवासीय परियोजना में 50 बीघा नदी भूमि
सुमन सेमवाल, देहरादून: बड़ोवाला में ईस्टर्न आर्क नाम से खड़ी की जा रही सुमेरु इंफ्रास्ट्रक्चर्स की आवा
सुमन सेमवाल, देहरादून: बड़ोवाला में ईस्टर्न आर्क नाम से खड़ी की जा रही सुमेरु इंफ्रास्ट्रक्चर्स की आवासीय परियोजना की जद में आसन नदी खाते की करीब 50 बीघा (4.075 हेक्टेयर) भूमि आ रही है। जिला प्रशासन की जांच में इस बात का ंखुलासा किया गया है। हालांकि जांच में परियोजना संचालकों ने बताया कि इस जमीन के पट्टे आवंटित किए गए थे, जिन्हें उन्होंने खरीद लिया। नदी खाते की जमीन के पट्टे जारी होने और फिर उन्हें बेचे जाने की तस्दीक के लिए अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) हरबीर सिंह ने सिंचाई विभाग से अलग से जांच कराने का निर्णय लिया है।
नायब तहसीलदार सर्वे मो. अशरफ की ओर से अपर जिलाधिकारी को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में एक गंभीर पहलू यह उभरकर आया है कि परियोजना क्षेत्र आपदा के लिहाज से संवेदनशील है। वर्ष 2013 की आपदा के बाद जिन संवेदनशील क्षेत्रों का जिक्र किया गया है, उनमें से एक स्थल यह भी है। वहीं, नदी किनारे बड़े-बड़े पुश्ते लगाने का भी पता चला है, हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि पुश्तों के निर्माणकर्ता का पता नहीं चल पाया है। परियोजना में 1884 नंबर का ऐसा खसरा भी पाया गया, जो परियोजना संचालकों के नाम पर नहीं है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह खसरा नंबर कांवली निवासी किसी सिकंदर खान के नाम पर चढ़ा है।
परियोजना को मिली एनओसी पर अनभिज्ञता
सुमेरु इंफ्रास्ट्रक्चर्स की ईस्टर्न आर्क परियोजना के लिए ली गई विभिन्न स्वीकृतियों/एनओसी की सत्यता को लेकर प्रशासन की जांच में अनभिज्ञता जताई गई है। जांच में कहा गया है कि यह प्रकरण अन्य महकमों से जुड़ा है।
निरस्त हो चुकी एक परियोजना
प्रशासन ने वर्ष 2009 में झाझरा में एयरफोर्स नेवल हाउसिंग सोसाइटी को 0.458 हेक्टेयर भूमि आवासीय परियोजना के लिए आवंटित की थी। परियोजना का निर्माण पूरा होने के बाद वर्ष 2013 में जमीन टौंस नदी की पाई गई तो आवंटन निरस्त कर दिया गया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के पूर्व के आदेशों में स्पष्ट है कि नदी, झील, पोखर, तालाब आदि की भूमि अन्य प्रयोजन के लिए नहीं दी जा सकती। जबकि इस मामले में जांच में यह बात भी सामने आई है कि नदी भूमि पर पट्टे आवंटित किए गए थे और उन पर भूमिधरी अधिकार मिलने के बाद उसे परियोजना संचालकों ने खरीदा है। बड़ा सवाल यह भी कि जब नदी खाते की जमीन का अन्य प्रयोग नहीं किया जा सकता तो पट्टे कैसे आवंटित कर दिए गए। हालांकि इसी बात की सत्यता जानने के लिए प्रशासन ने सिंचाई विभाग से भी जांच कराने का निर्णय लिया है।