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इस नुकसान के हैं सियासी फायदे

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून श्रमिक संगठनों की हड़ताल ने प्रदेश में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस की बांछें खि

By Edited By: Published: Thu, 03 Sep 2015 01:02 AM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2015 01:02 AM (IST)
इस नुकसान के हैं सियासी फायदे

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून

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श्रमिक संगठनों की हड़ताल ने प्रदेश में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस की बांछें खिला दीं। केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ 11 मजदूर संगठनों के आह्वान पर हड़ताल ने प्रदेश में बैंकिंग, बीमा, परिवहन, उद्योग एवं कारोबारी गतिविधियां ठप होने से सरकार को भले ही आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा हो, लेकिन कांग्रेस सरकार और संगठन इसे सियासी तौर पर फायदेमंद मान रहे हैं। नतीजतन हड़ताल को लेकर राज्य सरकार सख्ती अपनाने के बजाए दोस्ताने अंदाज में दिखी। प्रदेश में मिशन 2017 की मुंहबाए खड़ी चुनौती से जूझ रही कांग्रेस को केंद्र की भाजपानीत सरकार के खिलाफ मजदूर संगठनों के तीखे तेवरों ने राहत दी है।

केंद्र में नई सरकार आने के बाद पहली बार मजदूर संगठनों के देशव्यापी संयुक्त आंदोलन ने कांग्रेस की उम्मीदों में रंग भर दिया है। इसमें कांग्रेस के श्रमिक संगठन इंटक ने भी हड़ताल में भागीदारी की। प्रदेश में हड़ताल को इंटक के प्रत्यक्ष और सरकार के परोक्ष समर्थन का नतीजा ये रहा कि दोनों मंडलों गढ़वाल और कुमाऊं में सरकारी और निजी सार्वजनिक परिवहन संस्थाओं की भागीदारी के चलते यात्री बसों और वाहनों के चक्के जाम रहे तो तकरीबन 2500 करोड़ की आर्थिक गतिविधियां थम गई। चार धाम यात्रा सरकार की शीर्ष प्राथमिकता में होने के बावजूद परिवहन निगम की बसों ने पर्वतीय क्षेत्रों का रुख नहीं किया। गढ़वाल मंडल में निजी परिवहन संस्थाओं गढ़वाल मोटर्स ओनर्स यूनियन (जीएमओयू) और टिहरी गढ़वाल मोटर्स ओनर्स यूनियन (टीजीएमओयू) की बसें चार धाम यात्रा मार्ग पर नहीं चलीं। कुल बसें चलीं तो उन्हें भी उत्तरकाशी में रोक दिया गया। कुमाऊं मंडल में कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन (केएमओयू) के आह्वान पर बसें खड़ी रहें। सिर्फ परिवहन निगम की बसें बुधवार को नहीं चलने से ही निगम को करीब 50 लाख के नुकसान का अंदेशा है। परिवहन निगम के नुकसान को देखते हुए निगम प्रबंधन की ओर से श्रमिक संगठनों से बीते रोज वार्ता भी की गई, लेकिन उनके रुख को देखकर प्रबंधन ने कदम पीछे खींचे रहना ही मुनासिब समझा।

दरअसल, श्रमिक संगठनों के रोष को पार्टी केंद्र सरकार खासतौर पर भाजपा की घेराबंदी के रूप में देख रही है। प्रदेश में वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य सरकार और सत्तारूढ़ दल सबसे बड़ा खतरा 'मोदी इफेक्ट' को ही मान रही है। इसी वजह से बीते लोकसभा चुनाव में पार्टी की बुरी गत हो चुकी है। ऐसे में भूमि अध्यादेश पर केंद्र सरकार के मंसूबे के आड़े आई कांग्रेस को उम्मीद है कि श्रम कानूनों पर मजदूर संगठनों के आंदोलन से केंद्र को बैकफुट पर आना पड़ेगा। उधर, मुख्य सचिव राकेश शर्मा ने कहा कि हड़ताल से प्रदेश को खास नुकसान नहीं हुआ। परिवहन सेवाएं ठप रहने से करीब 50 लाख का नुकसान हुआ।

'केंद्र सरकार सिर्फ उद्योगपतियों की सुन रही है, उसे मजदूरों और कमजोरों से लेना-देना नहीं है। श्रम कानून लागू करने से पहले मजदूर संगठनों की सहमति आवश्यक है, लेकिन मोदी सरकार तानाशाही का रवैया छोड़ने को तैयार नहीं है। कांग्रेस हमेशा से मजदूरों के हितों के प्रति गंभीर रही है।'

-किशोर उपाध्याय, अध्यक्ष उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी


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