वन कानून में संशोधन की तैयारी
सुभाष भट्ट, देहरादून वन संपदा के संरक्षण व संवर्द्धन में आमजन की घटती सहभागिता से चिंतित केंद्र
सुभाष भट्ट, देहरादून
वन संपदा के संरक्षण व संवर्द्धन में आमजन की घटती सहभागिता से चिंतित केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब सख्त वन कानून को अधिक सरल व व्यवहारिक बनाने की कवायद में जुट गई है। जंगल के नियम-कायदों को और बेहतर व शिथिल बनाने के लिए केंद्र सरकार संशोधन बिल लाने पर विचार कर रही है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रकाश जावड़ेकर ने खुद इसकी पुष्टि की है। लगभग 71 प्रतिशत वन भूभाग वाले हिमालयी राज्य उत्तराखंड को केंद्र सरकार की इस नई पहल से बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।
सोमवार को देहरादून में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के दीक्षांत समारोह के बाद 'दैनिक जागरण' से बातचीत में जावड़ेकर ने कहा कि आमजन की सहभागिता के बिना वन व जैव विविधता के संरक्षण की मुहिम को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता। सख्त वन कानून की वजह से जंगल के प्रति आमजन के खत्म होते लगाव को फिर स्थापित करना जरूरी है। इसके लिए नियम-कायदों को शिथिल किया जाएगा। वन कानून को अधिक सरल व व्यवहारिक बनाने के लिए केंद्र सरकार संसद में संशोधन बिल भी लाएगी।
अपने दीक्षांत भाषण में भी केंद्रीय राज्य मंत्री ने इसके स्पष्ट संकेत दिए। आंध्र प्रदेश में चंदन के सघन वनक्षेत्र का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लाल चंदन लकड़ी की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक डिमांड है। हमारे पास आंध्र प्रदेश में लाल चंदन का बहुमूल्य जंगल तो मौजूद है, मगर उसमें निवास करने वाले स्थानीय लोग गरीबी में दिन काट रहे हैं। यह उचित नहीं है। इन वनवासी परिवारों की आजीविका को भी जंगल से ही जोड़ना होगा। केंद्र सरकार जल्द ऐसे कई महत्वपूर्ण उपाय करने जा रही है।
वन उपज व उत्पाद को स्थानीय लोगों की आजीविका का जरिया बनाने के लिए केंद्र सरकार गंभीर है। सख्त वन कानून के दुष्प्रभावों का जिक्र करते हुए केंद्रीय वन मंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र में ग्रेट इंडियन वल्चर (गिद्ध) की संख्या 400 थी, तब उसके प्रवास स्थल को सेंच्युरी घोषित कर दिया गया, मगर अब इनकी संख्या घटकर मात्र चार ही रह गई है। ऐसे में जंगल के पुराने व सख्त नियम-कायदों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सरल व व्यवहारिक बनाने की जरूरत है। विषम भूगोल वाले उत्तराखंड को भी विकास की राह में सघन वनक्षेत्र की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। ऐसे में केंद्र की इस नई पहल से उत्तराखंड के कई अधर में लटकी विकास योजनाओं की राह खुल सकती है।