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कर्ज के घी से जलेंगे गुलाबी योजनाओं के दीप

-केंद्र और राज्य के बीच सियासी तलवारें खिंचने से घोषणाओं की राह हुई दुर्गम -केंद्र ने तय की नाबार्

By Edited By: Published: Thu, 30 Jul 2015 01:05 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2015 01:05 AM (IST)
कर्ज के घी से जलेंगे गुलाबी योजनाओं के दीप

-केंद्र और राज्य के बीच सियासी तलवारें खिंचने से घोषणाओं की राह हुई दुर्गम

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-केंद्र ने तय की नाबार्ड से ऋण सीमा 800 करोड़, बीते वर्ष नहीं मिली ज्यादा ऋण की अनुमति

-पीडब्ल्यूडी को 500 करोड़, सिंचाई को 200 करोड़, पेयजल को 300 करोड़, कृषि व पशुपालन को 150 करोड़ रुपये का प्रावधान

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून

केंद्र और राज्य के बीच खिंची सियासी तलवारें मुख्यमंत्री की गुलाबी योजनाओं के आड़े आ सकती हैं। वेतन-पेंशन देने के लिए वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में ही कर्ज लेने को मजबूर राज्य सरकार को केंद्र सरकार के वित्तीय संस्थानों से तय सीमा से ज्यादा ऋण लेने में नाकों चने चबाने पड़ेंगे। नाबार्ड से बतौर ऋण 1200 करोड़ लेने की राज्य सरकार की कोशिशों में अड़ंगा लग सकता है। केंद्र सरकार ने नाबार्ड से 800 करोड़ की ऋण सीमा तय की है। ऐसे में अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए राज्य सरकार निजी वित्तीय संस्थानों से उधार लेने की तैयारी कर रही है।

खराब माली हालत और सीमित संसाधनों के चलते राज्य सरकार विकास योजनाओं को गति देने के लिए केंद्रीय मदद पर निर्भर है। 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर केंद्रीय मदद में कटौती के बाद राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। वेतन-पेंशन देने के लिए कर्ज लेने को विवश राज्य के सामने मुख्यमंत्री की घोषणाओं को जमीन पर उतारने की चुनौती है। इसके लिए राज्य सरकार को कर्ज लेना होगा, लेकिन इसके लिए भी एक सीमा तय है। केंद्र ने राज्य के लिए विभिन्न स्रोतों से कर्ज लेने की सीमा तकरीबन 4700 करोड़ निर्धारित की है। इसमें बाह्य सहायतित योजनाओं के लिए विश्व बैंक, एशियन विकास बैंक के साथ ही नाबार्ड से मिलने वाला कर्ज भी शामिल है।

गांवों और ग्रामीण आबादी को ध्यान में रखकर सरकार की ओर से शुरू की गईं कई योजनाओं के लिए धन को लेकर राज्य की निगाहें नाबार्ड पर टिकी हैं। नाबार्ड तकरीबन 1200 करोड़ का बड़ा ऋण देने पर सहमति जता चुका है। इसके आधार पर राज्य सरकार तमाम योजनाओं का खाका तैयार किया है। इस ऋण से पीडब्ल्यूडी को 500 करोड़, सिंचाई को 200 करोड़, पेयजल को 300 करोड़, कृषि व पशुपालन के लिए 150 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। नाबार्डपोषित योजनाओं के लिए वित्तपोषण 70:30 के अनुपात में होगा।

नाबार्ड ज्यादा ऋण देने को सहमत भले ही हुआ, लेकिन इस पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार को ही लेना है। केंद्र ने नाबार्ड से ऋण सीमा 800 करोड़ तय की है। बीते वित्तीय वर्ष में भी राज्य सरकार ने नाबार्ड से ज्यादा ऋण लेने की कोशिश की, लेकिन केंद्र ने हामी नहीं भरी। सरकार को मन मसोस के रहना पड़ा। दरअसल, केंद्र सरकार राज्य से खुद के वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने पर जोर दे रही है, लेकिन फिलहाल ऐसे किसी भी सुझाव पर राज्य सरकार कान धरने को तैयार नहीं है। सिर्फ नाबार्ड ही नहीं, अन्य केंद्रीय वित्तीय संस्थानों से राज्य को निर्धारित से ज्यादा ऋण मिलना मुमकिन नहीं है। सरकार को भी यह अहसास हो गया है। लिहाजा कर्ज लेने के लिए राज्य सरकार निजी वित्तीय संस्थानों के दर पर गुहार लगा सकती है।

'सरकार की योजनाओं के लिए धन की कमी नहीं होने दी जाएगी। सरकार निजी वित्तीय-बैंकिंग संस्थानों से ऋण लेने में गुरेज नहीं करेगी।'

हरीश रावत, मुख्यमंत्री उत्तराखंड।


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