40 हजार घरों से उठता ही नहीं कूड़ा
जागरण संवाददाता, देहरादून: दून को जैसे-जैसे नागरिक सुविधाओं के पैमानेपर कसा जा रहा है, देश के टॉप 20
जागरण संवाददाता, देहरादून: दून को जैसे-जैसे नागरिक सुविधाओं के पैमानेपर कसा जा रहा है, देश के टॉप 20 शहरों में जगह बनाने की राह उतनी ही मुश्किल नजर आ रही है। कूड़ा निस्तारण व्यवस्था को ही ले लीजिए, स्मार्ट सिटी में न सिर्फ शत प्रतिशत कूड़ा निस्तारण होना चाहिए, बल्कि कूड़ा उठान भी सभी घरों से हो। कूड़ा उठान के मोर्चे पर तो दून के कदम 60 फीसद घरों तक पहुंच गए हैं, मगर निस्तारण की दिशा में पहला कदम भी नहीं उठा। आलम यह है कि जो कूड़ा उठता है, वह भी जाकर डंप ही होता है। जबकि, वर्ष 2008 में जेएनएनयूआरएम में दिखाए गए कूड़ा निस्तारण प्लांट के ख्वाब की कीमत में भी 11 करोड़ रुपये से अधिक का इजाफा हो गया और तस्वीर अब तक धुंधली ही है।
शहर को दूषित करता 1.39 लाख किलो कचरा
जिन 40 फीसद घरों से कूड़ा उठाने की सुविधा नहीं, उनका कचरा घरों से निकलकर कहीं नालों में जमा हो जाता है तो कहीं खाली प्लाट व सड़क किनारे गंदगी को बढ़ावा देता है। राज्य गठन के 14 साल बाद भी दून में नगर निगम की ऐसी दशा सिस्टम की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा करती है।
जैविक-अजैविक एक ही कूड़ादान में
स्मार्ट सिटी के लिए यह भी मानक हैं कि जैविक व अजैविक कूड़े को अनिवार्य रूप से अलग-अलग कूड़ेदान में एकत्रित किया जाए। अफसोस कि हमारे शहर में दोनों तरह के कूड़े का उठान एक साथ होता है और ट्रेंचिंग ग्राउंड में उन्हें डंप भी एक साथ कर दिया जाता है।
24.40 से बढ़कर 36 करोड़ हुई निस्तारण की लागत
जवाहर लाल नेहरू अर्बन रेन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) से दून में कूड़ा निस्तारण के लिए 24.40 करोड़ रुपये की स्वीकृति मिली थी। कूड़ा निस्तारण का रिसाइक्लिंग प्लांट शीशमबाड़ा में लगाया जाना था। करीब छह साल तो प्लांट वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पेंच में उलझकर रह गया। दिसंबर 2014 में हरी झंडी मिली तो इसके बाद शासन डीपीआर को हरी झंडी दिखाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। स्थिति यह है कि योजना की लागत बढ़कर 36 करोड़ रुपये जा पहुंची है। इसे कब मंजूरी मिलेगी, कहना मुश्किल है। दून के स्मार्ट सिटी का सपना कभी नगर निगम और कभी शासन की लापरवाही से धरातल पर नहीं उतर पा रहा। वहीं, योजना के तहत ब्राह्मणवाला में लगने वाली कूड़ा ट्रांसफर यूनिट पर कोर्ट का पेंच फंसा है।