कागजों में 141 हेक्टेयर क्षेत्र में उगा जंगल
जांच में खुलासा: -40 वृक्षारोपण क्षेत्रों के चयन, पौधरोपण और पौधों की सुरक्षा के लिए इंतजामों में
जांच में खुलासा:
-40 वृक्षारोपण क्षेत्रों के चयन, पौधरोपण और पौधों की सुरक्षा के लिए इंतजामों में अनियमितता
-37 क्षेत्रों में पांच क्षेत्रों में नहीं पाए गए औषधीय पौधे
-पांच क्षेत्रों में प्राकृतिक घने वृक्ष मिले, इनके नीचे पौधों की वृद्धि मुमकिन नहीं
-12 वृक्षारोपण क्षेत्र अत्यधिक चट्टानी और पथरीली भूमि के रहे
-जांच में महज 23 क्षेत्र ही पाए गए पौधरोपण के अनुकूल
-141 हेक्टेयर क्षेत्रफल में नहीं हुआ वृक्षारोपण
-औसतन 0.37 हेक्टेयर में 407 के बजाए 687 पौधे रोपे गए, इनमें 60 फीसद यानी 416 जीवित मिले
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून
प्रदेश में वृक्षारोपण के नाम पर चांदी काटने का खेल हो रहा है। आश्चर्यजनक यह है कि इस खेल को कोई और नहीं, बल्कि हरियाली को बचाने और बढ़ाने का जिम्मा संभालने वाला वन महकमा अंजाम दे रहा है। महकमे ने अल्मोड़ा और चमोली जिले के आठ वन प्रभागों में कागजों में ही 141 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में जंगल उगा दिए। 279.50 हेक्टेयर क्षेत्र में 2.72 लाख पौधे रोपे दिखाए, जबकि मौका मुआयने में 138.44 हेक्टेयर क्षेत्र में ही उक्त पौधे रोपे गए थे। चट्टानी और पथरीली जमीन पर जंगल उगाने के इस खेल में अनियमितता का सिलसिला यही नहीं रुका। पौधों का जीवन बचाने के लिए बेहद जरूरी 74 चैकडैम और 39 जलकुंडों का निर्माण नहीं किया गया। सरकार की ओर से कराई गई जांच में अनियमितता की तस्दीक हुई है। जांच रिपोर्ट में 20 फीसद क्षेत्र में दोबारा वृक्षारोपण करने की संस्तुति की गई है।
प्रदेश में रोजगारपरक बहुद्देश्यीय पौधरोपण (औषधीय पौधों को संवर्धन) योजना को जिस उद्देश्य के साथ शुरू किया गया है, खुद वन महकमा ही इस योजना को पलीता लगा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में औषधीय पौधों को रोपकर उन्हें स्थानीय लोगों की आजीविका से जोड़ने की इस मुहिम का हश्र यह भी रहा कि महकमे ने वनों, वन पंचायतों और ग्राम पंचायतों की भूमि में सौ फीसद औषधीय पौधे रोपने के बजाए सिर्फ 74 फीसद ही ऐसे पौधे लगाए, जबकि 26 फीसद अन्य प्रजाति के पौधे रोप दिए। नियोजन महकमे की ओर से वर्ष 2008 से लेकर 2014 तक कुल छह वर्षो में उक्त योजना में वृक्षारोपण का जायजा लिया तो प्रदेश में हरियाली की चादर बिछाने के नाम पर चौंकाने वाली अनियमितता सामने आई।
नियोजन महकमे की जांच रिपोर्ट के मुताबिक उक्त दोनों जिलों के आठ वन प्रभागों में 40 क्षेत्रों को वृक्षारोपण के लिए चुना गया। इनमें सिर्फ 57 फीसद यानी 23 क्षेत्रों का चयन महकमे ने नियमों के मुताबिक किया। पांच ऐसे क्षेत्रों में वृक्षारोपण दर्शाया गया, जहां प्राकृतिक घने बड़े-बड़े पेड़ हैं। इनके नीचे पौधों का बढ़ना मुमकिन नहीं है। वहीं 12 ऐसे क्षेत्र चुने गए, जिनमें अत्यधिक चट्टान और पथरीली भूमि थी। 12 क्षेत्रों में वृक्षारोपण का शुद्ध क्षेत्रफल कम पाया गया। महकमे के मुताबिक 279.50 हेक्टेयर में 2.72 लाख पौधे रोपे गए, जबकि मुआयने में सिर्फ 138.44 हेक्टेयर में इन पौधों का रोपण पाया गया। जांच में यह भी सामने आया कि औसतन 0.37 हेक्टेयर में 687 पौधे लगाए गए, जबकि नियमों के मुताबिक सिर्फ 407 पौधे लगाए जाने चाहिए थे। कुल लगाए गए पौधों में से 60 फीसद यानी 216 पौधे जीवित मिले।
यही नहीं, जांच में यह भी सामने आया कि वर्ष 2008-09 से 2011-11 तक करीब पांच वर्ष पहले रोपे गए पौधों की लंबाई काफी कम पाई गई। इससे साफ जाहिर है कि पौधों को महज एक साल पहले रोपा गया। पौधों की सुरक्षा के लिए बनने वाली कुली दीवार के निर्माण में भी धांधली हुई। 10 फीसद क्षेत्रों में दीवार निर्धारित माप की नहीं बनाई गई तो 35 फीसद क्षेत्रों में यह दीवार नष्ट हो गई या क्षतिग्रस्त हो गई थी। इन क्षेत्रों में 74 चैकडैम और 39 जलकुंडों (खाल) का निर्माण नहीं किया गया। रिपोर्ट में इसकी अलग से जांच पर जोर दिया गया है।
जांच में की गई संस्तुतियां:
-आठ वृक्षारोपण क्षेत्रों में सिविल एवं सोयम वन प्रभाग अल्मोड़ा के धूरा संग्रोली वन पंचायत-एक (दडमाडी तोक), धूरा संग्रोली वन पंचायत-दो (पयपानी तोक), कीना वन पंचायत धूरा संग्रोली तोक एवं भूमि संरक्षण वन प्रभाग रानीखेत के रैली सिविल, रैली सिविल टाना, व अलकनंदा भूमि संरक्षण वन प्रभाग गोपेश्वर के नैला एैथा वन पंचायत, बद्रीनाथ वन प्रभाग गोपेश्वर के नंदाकिनी प्रथम, नंदाकिनी-द्वितीय में दोबारा वृक्षारोपण हो और इससे पहले मिट्टी की जांच जरूर की जाए।
-वृक्षारोपण क्षेत्रों को तीन वर्ष में वन पंचायतों को सौंपने के प्रावधान में संशोधन कर उक्त अवधि तीन से पांच वर्ष की जाए, वृक्षारोपण की देखभाल करने वाले मजदूर से क्षतिग्रस्त दीवार की मरम्मत, मृत पौधों के स्थान पर नए पौधों का रोपण किया जाए
-वृक्षारोपण के लिए मिट्टी का परीक्षण कराया जाए
-पौधरोपण गड्ढे खोदने के बाद हो और इनके समीप चैकडैम और जलकुंडों का निर्माण किया जाए।