सीएम की मानव संसाधन विकास मंत्रालय में दस्तक
राज्य ब्यूरो, देहरादून सरकारी डिग्री कालेजों में काम कर रहे संविदा डिग्री शिक्षकों के विनियमितीकरण
राज्य ब्यूरो, देहरादून
सरकारी डिग्री कालेजों में काम कर रहे संविदा डिग्री शिक्षकों के विनियमितीकरण को लेकर कैबिनेट के फैसले में हो रही देरी ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मामले के जल्द समाधान के लिए अब मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दर पर दस्तक दी है। गुरुवार को मंत्रालय को भेजे पत्र में मुख्यमंत्री ने संविदा शिक्षकों के स्थाईकरण में दिक्कतें दूर करने को यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन में छूट देने की पैरवी की है।
दरअसल, प्रदेश के दूरदराज के सरकारी डिग्री कालेजों में लंबे अरसे से पठन-पाठन का जिम्मा संभाल रहे संविदा शिक्षकों में अधिकतर यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन लागू होने से पहले पीएचडी कर चुके हैं। यही नहीं, वर्ष 2009 से पहले से कार्यरत इन शिक्षकों की कालेजों में तैनाती यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन से पहले लागू रेगुलेशन के आधार पर की गई है। यूजीसी का नया रेगुलेशन लागू होने के बाद अब इन संविदा शिक्षकों के नियमितीकरण में पेच फंस रहा है। साथ ही दूरदराज में शिक्षकों के बंदोबस्त में परेशानी पेश आ रही है। हालांकि इस मामले में मुख्यमंत्री से पहले उच्च शिक्षा सचिव राधिका झा की ओर से बीती 14 मार्च को पत्र यूजीसी को भेजा जा चुका है। इस पत्र में भी यूजीसी विनियम, 2010 में निर्धारित शैक्षिक अर्हता लागू होने की तारीख से पहले पीएचडीधारकों की अर्हता के संबंध में स्थिति स्पष्ट करने पर जोर दिया गया। यूजीसी की ओर से उक्त पत्र का जवाब अभी तक राज्य को नहीं दिया गया है।
डिग्री शिक्षकों का मसला उलझने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ा है। संविदा शिक्षकों के कार्मिक की पांच वर्ष की लगातार सेवा पर नियमितीकरण नियमावली के जरिए नियमितीकरण की कोशिशों को सरकार अंजाम तक पहुंचा नहीं सकी है। नतीजतन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गुरुवार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन से पहले पीएचडीधारकों को शैक्षिक अर्हता में छूट देने पर जोर दिया है। मुख्यमंत्री ने गेंद अब एमएचआरडी के पाले में खिसका दी है। प्रदेश में तकरीबन 230 संविदा डिग्री शिक्षक नियमितीकरण का इंतजार कर रहे हैं।