यूपीएमटी,,परिश्रम की आग में तपकर बनी कुंदन
देहरादून: कामयाबी की मिसाल ही नहीं, ये समाज के प्रेरक भी हैं। परिश्रम की आग में तपकर कुंदन बनना जानत
देहरादून: कामयाबी की मिसाल ही नहीं, ये समाज के प्रेरक भी हैं। परिश्रम की आग में तपकर कुंदन बनना जानते हैं। तभी असफलता भी और अधिक लग्न से आगे बढ़ने की हिम्मत देती है। यूपीएमटी में पांचवां रैंक हासिल करने वाली स्वाति गोयल भी इसी का उदाहरण है। गोयल परिवार मूलत: रुड़की का रहने वाला है। स्वाति के पिता बीएसएनएल मुख्यालय दिल्ली में डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। स्वाति की शिक्षा भी दिल्ली में ही कांन्वेंट स्कूल से हुई। डॉक्टर बनने की ख्वाहिश बचपन से थी। यह उनका पहला प्रयास नहीं था। इससे पहले भी मेडिकल की तमाम परीक्षाएं दी। लेकिन रैंक अच्छा नहीं रहा और मन मुताबिक कॉलेज नहीं मिला। सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की। इसी मेहनत का नतीजा अब सामने है। स्वाति से रुचि पूछिए तो जवाब मिलेगा पढ़ना।
बस सपने को जीने की ख्वाहिश
देहरादून: स्व-अध्ययन भी सफलता का मंत्र हो सकता है। यह साबित कर दिखाया है मुरादाबाद के दीपांक चौधरी ने। दीपांक ने दसवीं सेंट जोजफ्स नैनीताल से की और फिर बारहवीं दून इंटरनेशनल स्कूल से। बोर्डिग में रहने के कारण कभी मेडिकल की विधिवत कोचिंग नहीं ली। बस स्वयं से ही सतत अध्ययन में जुटे रहे। डॉक्टर बनने की तमन्ना थी और इस तमन्ना को पूरा करने के लिए शिद्दत से मेहनत की। तैयारी को तराशने के लिए केवल दिल्ली में एक माह का क्रैश कोर्स किया। इसी का परिणाम उन्हें मिला है। लग्न के बूते ही वह वरियता सूची में शीर्ष स्थान पर काबिज हुए। दीपांक के पिता रविपाल वकील हैं और मां कुसुम ग्रहिणी। बड़ा भाई पंकज एमबीए कर रहा है। पढ़ाई से अलग दीपांक की रुचि फुटबॉल में है।
खामियों से भी ली सीख
देहरादून: सफलता की इबारत लिखने वालों की यह कहानी है। असफलता उन्हें कमजोर नहीं करती, बल्कि खामियों से सीख लेकर वह बेहतर की जुगत में लग जाते हैं। यही जतन सफलता की राह प्रशस्त करता है। देहरादून के माजरा निवासी ऋषभ त्रिपाठी भी इसी का उदाहरण हैं। आइटीआइ माजरा के प्रधानाचार्य ऋषभ के पिता अनिल कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि उनका बेटा बचपन से ही डॉक्टर बनने की ख्वाहिश पाले है। विगत वर्ष उसने सेंट जोजफ्स एकेडमी से 93 प्रतिशत अंक के साथ इंटर किया। मेडिकल की तमाम परीक्षाएं दी, पर रैंक अच्छा नहीं आया और अच्छे कॉलेज में दाखिले से चूक गया। एक साल ड्राप कर डटकर तैयारी की। अपने सभी शौक से भी किनारा कर लिया। इसी का परिणाम रहा कि ऋषभ ने यूपीएमटी में 13वीं रैंक हासिल की। उन्होंने एआइपीएमटी भी दिया है। इसमें भी अच्छी रैंक की उम्मीद कर रहे हैं। खाली वक्त में वह क्रिकेट खेलना या डिस्कवरी चैनल देखना पसंद करते हैं।