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विधायक अब 27 साल पुराने प्रकरण पर मेहरबान

राज्य ब्यूरो, देहरादून प्रदेश में आम जनता को भले ही नियम-कानून का पाठ पढ़ाया जाए, लेकिन सत्ता से न

By Edited By: Published: Tue, 26 May 2015 01:05 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2015 01:05 AM (IST)

राज्य ब्यूरो, देहरादून

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प्रदेश में आम जनता को भले ही नियम-कानून का पाठ पढ़ाया जाए, लेकिन सत्ता से नजदीकी रखने वाले सियासी रसूखदारों के लिए इसके कोई मायने नहीं हैं। खासतौर पर शिक्षा महकमा तो माननीयों के आगे लाचार है। नियमों को दरकिनार रख 15 साल बाद मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति कराने में कामयाब रहे माननीय अब 27 साल पहले के एक और मामले को लेकर महकमे पर दबाव बनाए हुए हैं। अहम बात यह है कि शासन और महकमे के पास ऐसे दर्जनों प्रकरण हैं, लेकिन नीति बनाकर सभी को लाभ दिलाने के बजाए चुनिंदा को फायदा पहुंचाने की सरकार की नीयत पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

शिक्षा महकमे के मौजूदा नियम-प्रावधानोंके मुताबिक सेवारत कार्मिक की मृत्यु होने के पांच वर्ष की अवधि में मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति के लिए महकमे में आवेदन करना आवश्यक है। महकमे के पास काफी संख्या में ऐसे आवेदन आए हैं, जिनमें मृतक शिक्षक या कर्मचारी की मृत्यु के वक्त बच्चे छोटे और नाबालिग थे। ऐसे कई प्रकरणों में मृतक आश्रित नियुक्ति के लिए एड़ियां चटका रहे हैं, महकमा उन्हें नियमों का हवाला देकर टरका रहा है। वहीं मुख्यमंत्री के नजदीकी समझे जाने वाले कपकोट विधायक ललित फस्र्वाण 15 साल पुराने प्रकरण में मृतक आश्रित सौरभ बिष्ट को शिक्षा महकमे में रोजगार दिलाने में कामयाब रहे हैं। 'दैनिक जागरण' ने अपने बीते आठ मई के अंक में 'माननीय के आगे महकमा लाचार, नियम दरकिनार' शीर्षक से इस समाचार को ब्रेक किया था। उक्त नियुक्ति के बाबत जारी शासन के आदेश में इसे नजीर नहीं मानने की साफ हिदायत दी गई है। ऐसी हिदायत जोड़कर सरकार ने आम कर्मचारी या उसके परिवार के लिए तो रास्ता बंद कर दिया। अब महकमा भले ही उक्त आदेश को नजीर न माने, लेकिन खुद विधायक उसे नजीर के तौर पर ही ले रहे हैं।

हालत यह है कि अपने विधानसभा क्षेत्र ही नहीं, प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से भी इस तरह की नियुक्ति कराने के लिए वह पुरजोर पैरवी कर रहे हैं। विधायक ललित फस्र्वाण ने अब 27 साल पुराने मृतक आश्रित प्रकरण को लेकर शासन में दस्तक दी है। अपर मुख्य सचिव शिक्षा एस राजू को लिखे पत्र में उन्होंने 1987 में मृत एक शिक्षक के आश्रित को भी रोजगार देने की पैरवी की है। अब महकमा और शासन अपनी ही नजीर को लेकर उलझन में दिखाई दे रहा है।


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