बिस्सू के लिए सजने लगे गांव
संवाद सूत्र, चकराता: जौनसार-बावर में चार दिन तक मनाए जाने वाले क्षेत्र के प्रमुख पर्व बिस्सू की तैया
संवाद सूत्र, चकराता: जौनसार-बावर में चार दिन तक मनाए जाने वाले क्षेत्र के प्रमुख पर्व बिस्सू की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हर गांव में घरों की रंगाई-पुताई के साथ ही सजाने का काम शुरू हो गया है। स्थानीय बाजारों में पर्व के लिए जरूरी सामान की खरीददारी के लिए ग्रामीण स्थानीय के साथ ही विकासनगर बाजार तक पहुंच रहे हैं। 14 अप्रैल से शुरू होने वाला यह पर्व 17 अप्रैल को खत्म होगा।
देशभर में चैत्र शुक्ल एकादशी को बैसाखी पर्व की धूम रहती हैं। वहीं, डेढ़ लाख की आबादी वाले जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में पौराणिक परंपरा के तहत बिस्सू पर्व को मनाने की परंपरा है। इसमें हर वर्ष पूरे क्षेत्र में हर गांव के हर परिवार के लोग अपने मकानों की रंगाई पुताई के साथ नये कपडे़ खरीदते हैं। बिस्सू पर्व के लिए कुछ विशेष व्यंजन भी बनाते हैं। चार दिनों तक चलने वाले बिस्सू पर्व का पहला दिन कुलदेवता के नाम होता है। बैसाखी के दिन हर गांव के लोग सुबह जंगलों में जाकर बुरांस के फूल तोड़कर लाते हैं और मंदिरों में जाकर देवता को भेंट करते हैं। इसे फूलियात कहते हैं। दर्शन करके परिवार के सुख समृद्धि की कामना करते हैं। दूसरा दिन छोटा बिस्सू होता है। गांव के लोग एक दूसरे के घरों में जाकर विशेष व्यंजन परोसने के साथ ही गांव में लोकगीत व नृत्य का दौर चलता है। तीसरे दिन बिस्सू होता है। पूरा गांव नाचते गाते हुए लाठी डंडों व तलवार के साथ ढोल बाजों की थाप पर बिस्सू लेकर गांव से बाहर पूर्व से सुनिशचित स्थान पर हारूल, झेंता, रांसो ठोऊडे का प्रदर्शन करते हैं। चौथा दिन गनियात के रूप में मनाया जाता है। इसमें कई हर खत के लोग एक स्थान पर ढोल बाजों के साथ आकर बिस्सू को विदाई देते हैं। स्थानीय बाजार चकराता, सहिया, कालसी, नागथात, कोटी, हरिपूर, माक्टी के साथ ही विकासनगर बाजार में भी खरीददारी करने वालों की भीड़ होनी शुरू हो गई है।
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बुरांस के साथ नृत्य
14 अप्रैल को पूरे क्षेत्र में हर गांव के लोग सुबह ही जंगलों से बुरांस लेने जाते हैं। इसे फुलियात कहा जाता है। जंगलों से लाए बुरांस के साथ नाचते-गाते लोग आंगन में आकर बुरांस को कुलदेवता को चढ़ाने के साथ ही घरों को भी सजाते हैं।