मेरा सपना है, मैं गढ़वाली फिल्म बनाऊं
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश: सुप्रसिद्ध सिने अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी ने तीर्थनगरी पहुंच कर गंगा में रिव
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश: सुप्रसिद्ध सिने अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी ने तीर्थनगरी पहुंच कर गंगा में रिवर राफ्टिंग का लुत्फ उठाया। उन्होंने कहा कि माटी की खुशबू उन्हें किसी न किसी बहाने यहां खींच लाती है। वह अब जल्द ही एक गढ़वाली फिल्म पर काम शुरू करने जा रही हैं, जो हमेशा ही उनका सपना रहा है।
रविवार को सिने अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी निजी कार्यक्रम के तहत ऋषिकेश पहुंची। उन्होंने पुत्र हिमांशु, मां शैल भट्ट, मुनिकीरेती कैलाश गेट निवासी मामा अन्नू शर्मा व परिजनों के साथ गंगा में शिवपुरी से मुनिकीरेती तक राफ्टिंग का लुत्फ उठाया। कैलाश गेट में पत्रकारों से रूबरू हुई हिमानी शिवपुरी ने कहा कि उत्तराखंड की वादियों में आने का वह कोई भी मौका नहीं गंवाना चाहती, खास कर ऋषिकेश तो बचपन से उनकी पसंदीदा जगह रही है। गंगा में राफ्टिंग के अनुभव को खास बताते हुए उन्होंने कहा कि गंगा का सानिध्य तो किसी भी रूप में मिल जाए, मनुष्य तृप्त हो जाता है। फिर राफ्टिंग के रूप में गंगा की गोद में खेलना तो अलग ही अनुभूति है। उन्होंने कहा कि फिल्मों के सिलसिले में वह दुनिया भर में घूमी है। स्विटजरलैंड व न्यूजीलैंड जैसे देशों की खूबसूरती देखने का मौका मिला, लेकिन उत्तराखंड का सौंदर्य भी अद्भुत और अद्वितीय है। इसमें कोई दोराय नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्मों के लिए यहां अपार संभावनाएं हैं, लेकिन अब तक की सरकारों ने इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किए। अफसोस की बात तो यह है कि इसके लिए कभी पहल भी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि गढ़वाली फिल्म बनाना उनका हमेशा ही सपना रहा है और इसे वह जल्द ही पूरा करेंगी। गढ़वाली फिल्म में काम करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं एक कलाकार हूं और जब मैं तमिल व मराठी फिल्मों में काम कर सकती हूं तो अपनी माटी और बोली से जुड़ी फिल्मों में क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि गढ़वाली फिल्में बन तो रही हैं, लेकिन उनमें पहाड़ की संस्कृति कम और मुंबय्या तड़का अधिक है।
थिएटर मेरा प्राण है
कई सुपरहिट फिल्मों में यादगार किरदार निभाने वाली अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी ने कहा कि थिएटर मेरा प्राण है और वह थिएटर के बिना अधूरी हैं। उन्होंने कहा कि मैंने कभी फिल्मों में काम करने की नहीं सोची थी, लेकिन छोटे-छोटे किरदार निभाते हुए वह कब बड़ी फिल्मों तक पहुंच गई, मुझे खुद ही पता नहीं। खैर, अभी भी मेरी जान थिएटर में ही बसती है।