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-चुकाते रहिए पर्यावरण की कीमत

उत्तराखंड को झटका: -पर्यावरण बंदिशों ने भूख, पानी, बिजली को तड़पाया, पहाड़ों से पलायन -केंद्रपोषित

By Edited By: Published: Sun, 01 Mar 2015 01:02 AM (IST)Updated: Sun, 01 Mar 2015 01:02 AM (IST)

उत्तराखंड को झटका:

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-पर्यावरण बंदिशों ने भूख, पानी, बिजली को तड़पाया, पहाड़ों से पलायन

-केंद्रपोषित योजनाओं के मानकों में नहीं मिली छूट, आठ योजनाओं में मदद बंद

-राज्य में पर्यटन के लिए आधारभूत ढांचा खड़ा करने की मुहिम पर संकट

-औद्योगिक पैकेज बहाल नहीं, पर्यावरण अनुकूल उद्योगों को नहीं दी तरजीह

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून

आम बजट ने उत्तराखंड को बड़ा झटका दिया है। देश को हजारों करोड़ की पारिस्थितिकीय सेवाएं मुहैया करा खुद पर्यावरण बंदिशों के एवज में भूख, प्यास, बिजली से तरसते और पलायन के चलते आबादी से दूर होते पहाड़ों को बजट ने इस बार भी मजबूत सहारा देना तो दूर, दिलासा तक नहीं दी। 14वें वित्त आयोग और रेल बजट की तर्ज पर आम बजट में राज्य के प्रति गहरी बेरुखी का अंदाजा इससे लग सकता है कि केंद्रीय मदद से आठ योजनाओं को महरूम किए जाने से राज्य में ई-शासन, पुलिस बल के आधुनिकीकरण, पिछड़े क्षेत्रों और पंचायतों को अपने पैरों पर खड़ा करने के साथ ही पर्यटन का आधारभूत ढांचा बनाने की मुहिम औंधे मुंह गिरने की नौबत है। बजट में राज्य के हिस्से में छिटपुट कुछ आया, लेकिन विषम भौगोलिक क्षेत्रों में विकास की रफ्तार में बाधा दूर करने को केंद्रपोषित योजनाओं के मानकों में छूट की पैरोकारी पर भी केंद्र ने कान तक नहीं धरे गए।

राज्य को पर्यावरणीय-पारिस्थितिकीय सेवाओं के बदले जुबानी शाबाशी तो खूब मिल रही है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिससे राज्य की माली हालत में सुधार किया जा सके। वन और जल की अकूत संपदा के बावजूद हकीकत ये है कि उसे सहेजने वाले इलाकों के लोग खुद बदतर जीने को मजबूर हैं। यही वजह है कि हर बार आम बजट के मौके पर राज्य में यह उम्मीद जागती है कि उसकी सुध ली जाएगी। 14वें वित्त आयोग में अनदेखी के बाद राज्य को आम बजट में भी विशेष मदद मिलने के मामले में मायूस होना पड़ा है। हालांकि, ग्रीन डेफिसिट राज्यों पर केंद्र ने मेहर बरसाने से गुरेज नहीं किया। औद्योगिक पैकेज या पर्यावरण के अनुकूल उद्योगों को खास तरजीह देने की बंद राह इस बार भी खुल नहीं पाई।

खास दर्जा मिलने के कारण केंद्रपोषित योजनाओं में अन्य राज्यों से बेहतर स्थिति में होने के बावजूद उत्तराखंड फायदा उठाने में लाचार बना हुआ है। पर्यावरणीय बंदिशें, वन संरक्षण और तमाम कारणों से राज्य के 80 फीसद से ज्यादा भू-भाग पर बुनियादी सुविधाओं की पैठ नहीं बन पा रही है। इस कोशिश को परवान चढ़ाने के लिए केंद्रपोषित योजनाओं के मानकों में छूट देने की दरकार है। केंद्र में नई सरकार आने के बाद राज्य को उम्मीद थी कि उसकी परेशानी दूर करने की दिशा में ठोस पहल की जाएगी। बजट में यह पहल नदारद तो है ही, साथ में आठ योजनाओं को केंद्रीय सहायता से मुक्त किए जाने से राज्य को बड़ा झटका लगा है। इन योजनाओं में राज्य को औसतन 75 फीसद मदद केंद्रीय हिस्सेदारी के रूप में मिलती रही है। अब राज्य को उक्त योजनाओं के लिए सौ फीसद खर्च खुद उठाना होगा। एक अनुमान के मुताबिक राज्य को तकरीबन 500 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिन 24 केंद्रपोषित योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी बदली गई है, वह ज्यादा हुई तो भी राज्य की मुश्किलें बढ़ना तय है। खासतौर पर पर्यटन को विकसित करने की मुहिम परवान चढ़ने पर ही संदेह के बादल मंडरा रहे हैं।

इनसेट-एक

केंद्रीय सहायता से मुक्त योजनाएं: इनसे राज्य को नुकसान तय

-राष्ट्रीय ई-शासन योजना

-पिछड़ा अनुदान कोष

-पुलिस बलों का आधुनिकीकरण

-राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण अभियान

-राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन

-पर्यटन अवसंरचना

-6000 माडल स्कूलों की स्थापना

-निर्यात अवसंरचनाओं के विकास को राज्यों को केंद्रीय सहायता

इनसेट-दो

बजट में यूं जिंदा हैं कुछ उम्मीदें:

-पांच किमी के दायरे में एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल

-न्याय पंचायत स्तर पर एक स्वास्थ्य केंद्र

-सीमांत क्षेत्रों के लिए 25 हजार करोड़

-उत्तराखंड में राष्ट्रीय महिला उत्थान संस्थान

-योग व्यवसाय धर्मार्थ प्रयोजन के दायरे में शामिल

-नमामि गंगे और स्वच्छ गंगा निधि में राज्य को मिल सकती है धनराशि

-छोटे व कुटीर उद्योगों को नकद प्रवाह का इंतजाम, उद्यमियों के लिए मुद्रा बैंक


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