सार्वजनिक शौचालय नहीं 'नरक'
जागरण संवाददाता, देहरादून: कहने को तो दून सूबे की एकमात्र स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है, लेकिन क्या वा
जागरण संवाददाता, देहरादून: कहने को तो दून सूबे की एकमात्र स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है, लेकिन क्या वास्तव में यहां की स्थिति इस लायक है। बात शहर में जनता के लिए उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं की करें तो यहां एक भी सार्वजनिक शौचालय ऐसा नहीं है, जिसका उपयोग किया जा सके। गंदगी और बदबू का हाल ये है कि इनका उपयोग करना तो दूर, आमजन इनके पास से निकलना भी मुसीबत समझता है। 'नरक' बने शहर के सार्वजनिक शौचालयों का ध्यान न तो नगर निगम को है, न प्रशासन और एमडीडीए को। यही हाल, सार्वजनिक पेयजल टंकियों का भी है। कहीं नल टूटे पड़े हैं तो कहीं कूड़े के ढेर लगे हैं। फिर भी सरकार दावा करती है कि दूनवासियों को सभी सुविधाएं मयस्सर हैं।
शहर के लगातार फैलते आकार, तंग होती सड़कों और वाहनों की रेलम-पेल ने दून का सुकून छीन लिया है। बात सुविधाओं की करें तो तस्वीर संवारने के लिए सरकारी एजेंसी लोक निर्माण विभाग, मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण और नगर निगम ने कुछ योजनाओं का खाका जरूर बनाया। लेकिन, इनमें से कुछ परवान ही नहीं चढ़ीं और जो परवान चढ़ीं उनका काम कछुआ गति से चल रहा है। हालात यह हैं कि यहां समय के साथ सुविधाओं का अभाव होता जा रहा है। सार्वजनिक शौचालय व पेयजल टंकियों के हाल ऐसे हैं कि आमजन प्रयोग ही नहीं कर सकता।
शहर में कहने को पांच सार्वजनिक सुलभ शौचालय और चार दर्जन मूत्रालय हैं, लेकिन इनमें प्रयोग करने लायक एक भी नहीं है। सुलभ शौचालय की जिम्मेदारी एमडीडीए के पास है तो नगर निगम मूत्रालयों की जिम्मेदारी संभालता है। सुलभ शौचालयों में शुल्क लगता है तो कभी-कभार यहां सफाई मिल भी जाती है। लेकिन, सार्वजनिक मूत्रालयों के पास से तो गुजरना भी मुश्किल है। सरकार से लेकर तमाम नीति-नियंता दून में बैठते हैं और रोजाना इन्हीं सड़कों से गुजरते हैं। मगर, यह दुर्भाग्य ही है कि इन खस्ताहाल शौचालयों और पेयजल टंकियों का सुधलेवा कोई नहीं।
पर्यटकों-ग्राहकों को होती है परेशानी
शहर की सड़कों-बाजारों में सार्वजनिक शौचालय न होने से पर्यटकों व खरीदारी करने आए लोगों को काफी परेशानी होती है। आप दिल्ली रोड की तरफ से शहर में आएं या हरिद्वार रोड, चकराता रोड से। पूरे रास्ते में आपको कहीं भी न तो सार्वजनिक सुलभ शौचालय मिलेगा, न पेयजल टंकी। इससे सबसे ज्यादा परेशानी महिला वर्ग को झेलनी पड़ती है।
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देहरादून को राजधानी बनाते वक्त सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन वे सिर्फ दावे ही साबित हुए। बिल्कुल सही बात है कि शहर में सार्वजनिक शौचालय नहीं हैं। जहां हैं, वहां कोई कदम नहीं रख सकता। ऐसे में सरकार हमसे टैक्स क्यों वसूलती है, जब हमें मूलभूत सुविधाएं ही नहीं दी जा रहीं।
आदर्श सैनी, टीएचडीसी कॉलोनी, मोबाइल-8650505160
हमें शर्म आती है, जब पर्यटक कई बार रुककर पूछते हैं कि यहां कोई सुलभ शौचालय है क्या। उन्हें क्या बताएं कि हमारे शहर में ऐसी सुविधाएं ही नहीं हैं। यहां बड़े-बड़े कॉलेज, कॉम्प्लेक्स, मॉल आदि खुल रहे हैं, लेकिन सरकार आमजन के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पा रही। क्या फायदा शहर के ऐसे विकास का।
अक्षय कुमार, सेवलाकलां, मोबाइल-9058575974
शहर में सार्वजनिक शौचालय व पेयजल टंकियों की दुर्गति का हाल ये है कि यहां झांकना तक मुनासिब नहीं है। बाजारों में बच्चों या महिलाओं को लघुशंका जाना हो तो कहीं भी व्यवस्था नहीं है। पूरे भारत में स्वच्छता अभियान चल रहा है, लेकिन दून के नीति-नियंताओं को इसकी परवाह ही नहीं। काश कोई इन समस्याओं की सुध ले।
राजीव कुमार गुप्ता, तिलक रोड, मोबाइल-9412009516
बाजार में अक्सर महिलाएं व स्कूल कॉलेज की छात्र-छात्राएं हमारी दुकानों पर आकर पूछते हैं कि आसपास कोई सुलभ शौचालय है क्या। हालात ऐसे हैं कि हमें हर बार शर्मिदा होना पड़ता है। यही नहीं हमें खुद भी आसपास के किसी परिचित के घर में लघुशंका के लिए जाना पड़ता है। सरकारों को इस दिशा में भी सोचना चाहिए।
अनिल कुमार गोयल, व्यापारी डिस्पेंसरी रोड, मोबाइल-9634128173