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चार साल पहले उजाड़ा, बसाने का नाम नहीं

जागरण संवाददाता, देहरादून: नियम वही, अधिकारी वही और काम भी वही, लेकिन हर काम में नीयत अलग-अलग। चार स

By Edited By: Published: Fri, 30 Jan 2015 08:41 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jan 2015 08:41 PM (IST)
चार साल पहले उजाड़ा, बसाने का नाम नहीं

जागरण संवाददाता, देहरादून: नियम वही, अधिकारी वही और काम भी वही, लेकिन हर काम में नीयत अलग-अलग। चार साल पहले 31 जनवरी 2011 को तहसील चौक के चौड़ीकरण में तोड़ी तो 20 दुकानें गईं थीं, लेकिन जब पुनर्निर्माण की बारी आई तो सिर्फ 14 को ही जगह मिल पाई। तब से छह व्यापारी बेरोजगारी की हालत में भटक रहे हैं। एक व्यापारी तो प्रदेश से लेकर केंद्र सरकार तक की चौखट पर दरख्वास्त दे चुके हैं, लेकिन इंसाफ नहीं मिला। जबकि, इसी अवधि में मानकों को ताक पर रखकर अपात्र लोगों को दो दुकानें जिलाधिकारी ने आवंटित कर दी। वहीं, शासन ने भी डिस्पेंसरी रोड पर बिना स्वामित्व प्रमाण पत्र के 13 व्यवसायियों को दुकानें बांट दीं।

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शनिवार को व्यापारियों के प्रतिष्ठान को उजड़े चार साल पूरे हो जाएंगे। इस अवधि में प्रभावित व्यापारी रजनीश मित्तल विशेष रूप से मामले को मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठा चुके हैं और प्रशासन से लेकर शासन को भी स्थिति से वाकिफ करा चुके हैं। यही नहीं, वे प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिख चुके हैं। अधिकारी न तो मानवाधिकार आयोग के आदेश को मान रहे, न प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले निर्देश पर ही अमल कर मामले में उचित कार्रवाई कर रहे।

इस तरह हो रहा पक्षपात

-प्रभावित व्यापारी रजनीश मित्तल ने अपनी माली हालत सबसे कमजोर बताते हुए कचहरी परिसर में दुकान की मांग की थी। यह दुकान कलक्ट्रेट के एक कर्मचारी के नाम थी, जिसे निरस्त किया जाना था। जिलाधिकारी ने इसे निरस्त तो किया, लेकिन यहां पर कलक्ट्रेट के ही दो पूर्व कर्मियों को जगह दे दी। जिसमें से एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई, जबकि दूसरा व्यक्ति एमडीडीए में संविदा पर कार्यरत है।

-शासन ने डिस्पेंसरी रोड पर बने कॉम्पलेक्स में ऐसे 13 व्यवसायियों को दुकानें आवंटित कीं, जिनके पास किसी तरह के स्वामित्व व दुकान संचालन के दस्तावेज नहीं थे। जबकि, तहसील चौक के मामले में अधिकारी शुरू से ही पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रहे हैं।


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