उत्तराखंड स्वरोत्सव :: स्वप्रयासों से समृद्ध होता रहा लोक
जागरण संवाददाता, देहरादून: लोक सनातन है, इसलिए उसे जीवन से अलग करके नहीं देखा जा सकता। बल्कि, यूं कह
जागरण संवाददाता, देहरादून: लोक सनातन है, इसलिए उसे जीवन से अलग करके नहीं देखा जा सकता। बल्कि, यूं कहा जाए कि लोक के बिना जीवन का कोई मूल्य ही नहीं है तो अत्युक्ति न होगी। यह भी सच है कि लोक की समृद्धि के बिना कोई भी समाज अस्तित्वहीन हो जाता है। यहूदियों को ही देख लीजिए। अपना अस्तित्व बचाने को वह किस तरह इजरायल की ओर दौड़ पड़े थे। और..देख लीजिए, तमाम संकटों के बीच कैसे यहूदी दुनिया में अपना लोहा मनवा रहे हैं। लेकिन, इसके ठीक उलट हम अपनी जड़ों से कटते जा रहे हैं। हम भूल गए हैं कि सांस्कृतिक मूल्यों के बिना भौतिक उन्नति के कोई मायने नहीं।
जरा देश के उन प्रांतों पर नजर डालिए, लोक की समृद्धि के कारण जिनकी पूरी दुनिया में अलग पहचान है। उत्तराखंडी लोक भी ऐसा ही तो है, लेकिन लोग अपनी विरासत को भूलते जा रहे हैं। खासकर, सरकारी स्तर पर तो जैसे लोक की कोई अहमियत ही नहीं रही। यही वजह है कि इन 14 सालों में उत्तराखंड सांस्कृतिक स्तर पर अपनी अलग पहचान नहीं बना पाया। हमारे लोक कलाकार रोजी की तलाश में महानगरों की तरफ पलायन कर गए, लोक वाद्य संग्रहालयों में सजाने की वस्तु बन गए और लोक कलाएं विलुप्ति के कगार पर जा पहुंचीं। जबकि, जिम्मेदार चाहते तो परंपराओं के धनी इस प्रदेश में लोक संस्कृति जीवन की खुशहाली का साधन बन सकती थी।
खैर! इस सबके बावजूद संस्कृति के संवाहक लोक की समृद्धि के लिए समर्पण भाव से कार्य कर रहे हैं। इन्हीं स्वप्रयासों से लोक जीवित है और जीवंत भी है। और..उम्मीद की जानी चाहिए कि यही प्रयास एक दिन उत्तराखंडी संस्कृति को विशिष्टता प्रदान करेंगे। लोक कलाकारों को सम्मानित करने के बहाने 'दैनिक जागरण' इन्हीं प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है। ..तो आइए! 'उत्तराखंड स्वरोत्सव' में भागीदार बन लोक के संवाहकों का मनोबल बढ़ाएं और सांस्कृतिक उन्नयन के लिए पूर्ण मनोयोग से जुट जाने का संकल्प लें।
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किसी भी समाज की समृद्धि उसके लोक में निहित है। लोक गीत महज मनोरंजन का ही साधन नहीं हैं, बल्कि इनमें हमारा अतीत भी समाया हुआ है। एक तरह से लोकगीत इतिहास का प्रतिबिंब हैं। सोचिए, इतिहास से मुंह मोड़कर हम खुशहाल भविष्य के सपने कैसे बुन सकते हैं।
-हीरा सिंह राणा, प्रसिद्ध लोकगायक
सदियों से जिस धरोहर को हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक-दूसरे के सुपुर्द करते आए, वह लोकगीत ही हैं। इनसे पता चलता है कि हमारा रहन-सहन, रीति-रिवाज और परंपराएं कितनी समृद्ध रही होंगी। नंदा देवी राजजात इसका प्रमाण है, जो बताती है देवभूमि में बेटी का कितना मान है।
-बसंती बिष्ट, प्रसिद्ध जागर गायिका
सांस्कृतिक समृद्धि किसी भी समाज की खुशहाली का पर्याय है। जब 'गरबा' गुजरात को, 'गिद्दा' पंजाब को, 'बिहू' असोम को व 'कथकली' नृत्य केरल को समृद्धि प्रदान कर सकते हैं तो चांचरी, थड़िया-चौंफला, छोलिया, रासों, तांदी व छपेली जैसे तमाम समृद्ध गीत-नृत्य उत्तराखंड को क्यों नहीं।
-बिशन हरियाला, प्रसिद्ध लोकगायक
हमारे पास ढोल सागर जैसी विधाएं हैं, लेकिन नई पीढ़ी को इनके बारे में जानकारी नहीं। ठीक है कि लोक के संवाहक अपनी पारंपरिक विधाओं को संजोने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन बेहतर होता कि सरकारी स्तर पर लोक कला एवं कलाकारों को संरक्षण देने के लिए गंभीर प्रयास होते।
-चंद्र सिंह राही, प्रसिद्ध लोकगायक