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राज्य की सुस्ती, केंद्र पर तोहमत

By Edited By: Published: Thu, 31 Jul 2014 01:00 AM (IST)Updated: Thu, 31 Jul 2014 01:00 AM (IST)
राज्य की सुस्ती, केंद्र पर तोहमत

सुभाष भट्ट, देहरादून

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विभिन्न विकास योजनाओं के तहत वनभूमि हस्तांतरण में लेटलतीफी के लिए भले ही केंद्र सरकार को दोषी ठहराया जाता हो, मगर हकीकत यह है कि इस मामले में राज्य के सरकारी महकमे (यूजर एजेंसी) खुद ही लापरवाह बने हुए हैं। वन भूमि हस्तांतरण के लंबित 468 प्रकरणों पर गौर करें, तो कुछ ऐसी ही तस्वीर नजर आ रही है। इनमें से अकेले 380 प्रकरण ऐसे हैं जो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में नहीं, बल्कि राज्य सरकार के विभागों के स्तर पर लंबित चल रहे हैं। यह दीगर बात है कि सूबे की सरकार को शायद अपने इन महकमों की सुस्ती नजर नहीं आ रही।

फारेस्ट क्लीयरेंस के प्रकरणों में देरी के लिए अक्सर केंद्र सरकार के सिर तोहमत मढ़ने वाले राज्य के अफसरों को लगता है अपने गिरेबान में भी झांकना जरूरी हो गया है। वजह यह है कि इस लेटलतीफी के लिए केंद्र सरकार नहीं, बल्कि राज्य के सरकारी विभाग ज्यादा जिम्मेदार नजर आ रहे हैं। हैरत की बात यह है कि सरकारी महकमे विकास योजनाओं के लिए केंद्र को वनभूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव तो जरूर भेज देते हैं, मगर इसके लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की जरूरी शर्तो को पूरा करने में लापरवाह बने रहते हैं।

शायद यही वजह है कि फारेस्ट क्लीयरेंस के कुल 468 लंबित प्रकरणों में से 380 मामले राज्य के विभिन्न विभागों के स्तर पर लटके पड़े हैं। इनमें सड़कों के सबसे अधिक 319 मामले शामिल हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि सड़कों के 161 प्रकरणों में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय वन भूमि हस्तांतरण की सैद्धांतिक सहमति दे चुका है, मगर राज्य के संबंधित विभागों की ओर से जरूरी शर्ते पूरी करने में देरी हो रही है। इसके अलावा सड़कों से जुड़े 111 मामलों में प्रथम चरण के प्रस्ताव भी अब तक केंद्र को नहीं भेजे जा सके हैं।

इनसेट..

फारेस्ट क्लीयरेंस के लंबित प्रकरण

सेक्टर यूजर एजेंसी केंद्र कुल

सड़क 272 47 319

पेयजल 09 00 09

सिंचाई 02 01 03

खनन 03 03 06

पारेषण 08 05 13

जलविद्युत 08 06 14

अन्य 78 26 104

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कुल 380 88 468

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