Move to Jagran APP

हरिद्वार में महारथियों की डूबी है नैया

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 01:01 AM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 01:01 AM (IST)
हरिद्वार में महारथियों की डूबी है नैया

विकास गुसाई, हरिद्वार

loksabha election banner

केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले दिग्गजों के अरमान एक जमाने में हरिद्वार लोकसभा सीट में धूल धूसरित हुए हैं। केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती और इस बार भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव लड़ने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान हरिद्वार सीट पर पूर्व में चुनाव हार चुके हैं। यह वाकया इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि दोनों एक साथ चुनावी रण में उतरे थे और दोनों को ही हार का मुंह देखना पड़ा था।

देवभूमि के प्रवेशद्वार व कुंभनगरी हरिद्वार की एक विशेषता है, वह यह कि इस सीट ने कभी एक पार्टी को लंबे समय तक यहां वर्चस्व कायम नहीं रखने दिया। यहां के मतदाताओं ने भाजपा व कांग्रेस के साथ ही प्रदेश में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही समाजवादी पार्टी को भी मौका दिया है। कई बड़े कद्दावर नेता इस सीट पर दिलचस्पी रखते हैं। इस बार भाजपा की ओर से पहले इस सीट से चुनाव लड़ने को उमा भारती ने भी दिलचस्पी दिखाई थी। खैर, अभी बात हो रही है उस दिलचस्प वाकये की जब यहां राजनीति के दो धुरंधरों को यहां के मतदाताओं ने जमीन दिखाई थी। दरअसल, तब हरिद्वार उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। 1984 के आम चुनावों में इस सीट से कांग्रेस के सुंदरलाल ने चुनाव जीता था। कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। इस कारण यह सीट खाली हो गई। इस पर 1987 में उपचुनाव कराया गया। लोक जनशक्ति के सर्वे सर्वा रामविलास पासवान ने इस उपचुनाव में ताल ठोकी, उनके सामने थीं आज के समय में प्रधानमंत्री पद की लालसा पाले बसपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी सुश्री मायावती। इन दोनों नेताओं ने चुनावों में पूरा जोर लगाया। चुनाव के नतीजे जब सामने आया तो आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस प्रत्याशी राम सिंह ने 1,49,377 वोट लेकर 23,978 वोट के अंतर से जीत प्राप्त की। 1,25,399 वोट लेकर मायावती दूसरे स्थान पर रही। रामविलास पासवान 34,225 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे। यहां एक दिलचस्प बात यह देखने को मिली कि 39,780 मत लेकर एक निर्दलीय प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा। उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी और वीरबहादुर सिंह यहां मुख्यमंत्री थे। उन्होंने कांग्रेसी प्रत्याशी को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि उन पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप भी लगे थे। उधर, रामविलास पासवान के प्रचार के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी यहां खासा जोर लगाया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.