Move to Jagran APP

महासमर: चुनावी दंगल में दांव पर सरकारी ओहदे

By Edited By: Published: Fri, 18 Apr 2014 01:01 AM (IST)Updated: Fri, 18 Apr 2014 01:01 AM (IST)
महासमर: चुनावी दंगल में दांव पर सरकारी ओहदे

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून

loksabha election banner

लोकसभा के चुनावी समर में एक बार फिर सत्तारूढ़ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को बांटे गए सरकारी ओहदे दांव पर होंगे। ओहदे पाने को जमीन-आसमान करने वाले चुनाव के मोर्चे पर भी जीजान से जुटते हैं या नहीं, चुनावी दंगल में तस्वीर साफ हो जाएगी। देश की सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव ने पार्टी को यह आंकने का सुनहरा मौका मुहैया करा दिया है कि सरकारी दायित्व से नवाजे जा चुके कार्यकर्ता कितना मुस्तैद रहे। यही नहीं इस दौड़ में शामिल नेताओं की लालसा पूरी करने से पहले उनकी परफारमेंस भी कसौटी पर परखी जाएगी। वर्तमान सरकार में बड़े-छोटे दायित्वधारियों का आंकड़ा तकरीबन सौ तक पहुंच चुका है। बड़े दायित्व के मामले में आम कार्यकर्ता की तुलना में विधायकों का ही पलड़ा भारी है। लोकसभा चुनाव में विधायकों की प्रतिष्ठा तो दांव पर है ही, दायित्वधारियों को भी अग्नि परीक्षा देनी होगी।

--

'लालबत्ती' से परेशान रहीं सरकारें

प्रदेश की सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल या दलों में सरकारी ओहदे पाने का क्रेज सिर चढ़कर बोलता है। इसका अंदाजा अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में अब तक एक अंतरिम और तीन निर्वाचित सरकारों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। नेताओं के लिए स्टेटस सिंबल बन चुकी यह प्रथा समाज में उनके रसूख के साथ जोड़ दी गई है। इसका ही नतीजा है कि कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार में रेवड़ियां बांटने के अंदाज में ढाई सौ से ज्यादा लालबत्तियां बांट दी गई तो उसके बाद दूसरी निर्वाचित भाजपा सरकार पूरे पांच साल तक पार्टी के भीतर इस मामले में बनने वाले तेज दबाव से जूझती रही। आखिरकार तकरीबन 60 से ज्यादा को लालबत्ती थमाकर पिंड छुड़ाना पड़ा। मौजूदा कांग्रेस सरकार को भी अपने दो वर्ष के कार्यकाल में सबसे ज्यादा इसी मुद्दे ने जमकर परेशान किए रखा। दो साल के भीतर दो मुख्यमंत्री देख चुकी पार्टी में अब तक करीब सौ कार्यकर्ताओं को दायित्वों से नवाजा जा चुका है।

----

खास फार्मूला नहीं, चहेतों पर करम

हालांकि राजनीतिक दलों के पास सरकारी ओहदे या लालबत्ती बांटने का सटीक फार्मूला है, इससे शायद ही कोई इत्तफाक रखता हो। खासमखास और चहेतों को दायित्व से नवाजने के लिए कोई खास वजह नहीं होती, अलबत्ता हर मौके पर डंडे-झंडे उठाने से लेकर दरी बिछाने तक सक्रिय कार्यकर्ताओं को भी सरकारी दायित्व का प्रसाद चखने का मौका तब ही नसीब हो पाता है, जब वह किसी न किसी दिग्गज और रसूखदार नेता का खासमखास हो। अन्यथा पार्टी के भीतर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जिन्होंने हर चुनौती और संकट के मौके पर पार्टी के साथ खड़ा रहकर न केवल डटकर मुकाबला किया, साथ में पार्टी को मजबूत बनाने के यज्ञ में पूरे मनोयोग से आहूति दी।

-----

दायित्व पर दावों को लेकर खींचतान

दायित्वों की पैरवी में अलग-अलग तरह से सुर बुलंद होते रहे हैं। यह दीगर बात है कि तमाम बहस के बावजूद इस मामले में जीत विधायकों के ही हाथ लगती है। पूर्ण बहुमत से दूर रहने वाली या गुटीय खींचतान में उलझी पार्टियों की सरकारों में विधायकों का येन-केन-प्रकारेण समर्थन हासिल करना ही एकमात्र उद्देश्य बनने से सरकारी ओहदों पर कार्यकर्ताओं के बजाए विधायकों के हाथ ही बाजी लग रही है। पार्टी के भीतर आम कार्यकर्ता इस प्रवृत्ति से खासा खफा है। कार्यकर्ताओं का तर्क रहता है कि विधायकी या सांसदी का टिकट हासिल करने और जीत दर्ज करने वालों को सरकारी ओहदे दिए जाने से उनका दावा कमजोर पड़ता है, जबकि चुनाव में जीत दर्ज कराने और पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार करने में उनके योगदान को दायित्व बांटते वक्त तरजीह मिलनी चाहिए।

----

विधानसभा में सत्तापक्ष की दलीय स्थिति:

सत्तारूढ़ कांग्रेस-33

निर्दलीय-03

बसपा-03

उक्रांद-01

मनोनीत-01

(सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुल विधायकों की संख्या-33, इनमें से सात मंत्री, एक विधानसभा अध्यक्ष और एक विधानसभा उपाध्यक्ष हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत अभी सांसद हैं। वहीं समर्थन देने वाले तीन निर्दलीय विधायकों में दो मंत्री व एक दायित्वधारी हैं। बसपा के तीन विधायकों में एक मंत्री और दो सरकारी ओहदे संभाल रहे हैं। उक्रांद कोटे के एकमात्र विधायक मंत्री हैं।)

--

वर्तमान में कांग्रेस के दायित्वधारियों पर एक नजर:

05 विधायक-संसदीय सचिव (मनोज तिवारी, हेमेश खर्कवाल, विजयपाल सजवाण, गणेश गोदियाल व फुरकान अहमद)

05 विधायक-सरकारी ओहदेधारक (प्रदीप बतरा, गणेश गोदियाल, राजेंद्र भंडारी, नारायणराम आर्य, शैलेंद्रमोहन सिंघल)

-----

कांग्रेस में हाल ही में दायित्व से नवाजे गए गैर विधायक

टिहरी संसदीय क्षेत्र: अशोक वर्मा, सेवानिवृत्त कैप्टन बलबीर सिंह रावत, बीना बिष्ट, जगदीश धीमान, कुशलानंद जोशी, रविप्रकाश, मूर्ति सिंह नेगी, विवेकानंद खंडूड़ी, पूर्व विधायक बलबीर सिंह नेगी, कमल सिंह नेगी, रजत अग्रवाल, शमीम अहमद, चमन सिंह, संजय डोभाल, विजय बग्गा व प्रदीप गोयल।

----

नैनीताल संसदीय क्षेत्र: पूर्व विधायक तिलकराज बेहड़, नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा, अनुपम शर्मा, पुष्कर दुर्गापाल, गुरजीत सिंह

हरिद्वार संसदीय क्षेत्र: विजय सारस्वत, धीरेंद्र प्रताप, धर्मपाल अग्रवाल, खतीब अहमद, नदीम अहमद खान, शमीम अहमद

---

गढ़वाल संसदीय क्षेत्र: रोशनलाल सेमवाल, कमल नेगी, भूपेंद्र लिंगवाल, सुदर्शन नेगी, माधव अग्रवाल।

-----


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.