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शोध-अनुसंधान: खुल गई दुश्मन वनस्पतियों के खात्मे की राह

वन अनुसंधान केंद्र कालिका में गहन अध्ययन व सफल प्रयोग के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से घुसपैठ कर रही दुश्मन वनस्पतियों के खात्मे की राह आसान हो गई है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 01 Aug 2017 10:04 PM (IST)Updated: Wed, 02 Aug 2017 04:30 AM (IST)
शोध-अनुसंधान: खुल गई दुश्मन वनस्पतियों के खात्मे की राह

रानीखेत, [दीप सिंह बोरा]: हिमालय की मूल वनस्पतियां व जैव विविधता बचाने की नई उम्मीद जगी है। गहन अध्ययन व सफल प्रयोग के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से घुसपैठ कर रही दुश्मन वनस्पतियों के खात्मे की राह आसान हो गई है। वन अनुसंधान केंद्र कालिका में प्रायोगिक तौर पर बेहद घातक कालाबांस यानी वनमारा (युपिटोरियम) को करीब नौ माह पूर्व फूल खिलने से पहले ही जड़ से उखाड़ा गया। 

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इस बरसात संबंधित इलाके में कालाबांस का नया पौधा दोबारा नहीं पनपा। उत्साहित शोध अधिकारी अब तीन अलग-अलग स्तरों पर गाजर व लैंटाना घास पर भी प्रयोग करने जा रहे हैं। इसके बाद उन्मूलन का यह फॉर्मूला राज्य के अन्य वन क्षेत्रों में भी आजमाया जाएगा।

 जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बीच गरम प्रदेशों की वनस्पतियों के हिमालयी क्षेत्र में जड़ें जमाने से मूल वन प्रजातियों ही नहीं, जैव विविधता के लिए भी लगातार खतरा बढ़ रहा है। तेजी से पहाड़ चढ़ रहे लैंटाना (कुर्री), कालाबांस, गाजर घास जैसी दुश्मन वनस्पतियों का दायरा बढ़ने से पहाड़ के फॉरेस्ट का स्वरूप बिगड़ रहा है, सो अलग। 

 इधर, नित नए शोध व प्रयोगों के बाद वन अनुसंधान केंद्र कालिका ने पहले चरण में वनमारा यानी कालाबांस को चुना। इसके तहत जंगल घेर चुकी इस वनस्पति के दस गुणा दस मीटर का क्षेत्र लिया गया और फूल आने से पहले ही इसे जड़ समेत उखाड़ दिया गया। नतीजा, इस बरसात वहां कोई नया पौधा नहीं पनपा, जिससे हिमालयी राज्य में मित्र वनस्पतियों को बचाने की राह आसान लगने लगी है। 

 इसलिए कहते हैं वनमारा 

अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ दशकों पूर्व गाजर घास के साथ भारत पहुंचा कालाबांस जहां फैलता है मूल वनस्पतियों को पनपने नहीं देता। वह जड़ी-बूटी, मॉस व फर्न तक को चट कर जाता है। इसीलिए इसे वन को मारने वाला अर्थात 'वनमारा' कहते हैं। 

 अब तीन स्तरों पर प्रयोग 

पहले चरण की सफलता के बाद कालाबांस के उन्मूलन को तीन स्तरों पर प्रयोग किए जाएंगे। जड़ से उखाड़, काट व जलाकर परखा जाएगा कि यह घातक वनस्पति दोबारा जड़ जमाती है या नहीं। प्रथम प्रयोग में फूल खिलने से पहले ही जड़ें उखाड़ दी गई थीं। 

 गाजर घास, लैंटाना आदि के उन्मूलन का भी यही तरीका

वन अनुसंधान केंद्र (कालिका) शोध अधिकारी आशुतोष जोशी का कहना है कि प्रयोग से स्पष्ट है कि फूल खिलने से पूर्व ही दुश्मन वनस्पति को जड़ समेत उखाड़कर उसका सही निस्तारण किया जाए। गाजर घास, लैंटाना आदि के उन्मूलन का भी यही तरीका है। तीन स्तरों पर नया प्रयोग और किया जाएगा। जो ठोस निष्कर्ष निकलेगा, वह हिमालयी वनस्पतियों को बचाने में मददगार साबित होगा।

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