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जंगल बचाने का हथियार यानी 'लौह हल'

संवाद सहयोगी, रानीखेत : जलवायु परिवर्तन के कारण तापवृद्धि की तपिश से हिमालयी राज्य भी अछूता नहीं रहा

By Edited By: Published: Sat, 18 Feb 2017 10:09 PM (IST)Updated: Sat, 18 Feb 2017 10:09 PM (IST)
जंगल बचाने का हथियार यानी 'लौह हल'
जंगल बचाने का हथियार यानी 'लौह हल'

संवाद सहयोगी, रानीखेत : जलवायु परिवर्तन के कारण तापवृद्धि की तपिश से हिमालयी राज्य भी अछूता नहीं रहा। उस पर वनाग्नि तथा लगातार घटती हरियाली ने चुनौती को कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे में लकड़ी का ठोस विकल्प लौह हल पहाड़ में बहुपयोगी वृक्षों का कटान रोक पर्यावरण बचाने के लिए मजबूत हथियार बनने लगा है। गढ़वाल में लौह हल को अपनाने के बाद कुमाऊं के किसानों की बढ़ती दिलचस्पी को पर्यावरण प्रेमी सुखद संकेत बता रहे। फिलवक्त, जनपद में वृक्षों का कटान बंद कर लगभग दो हजार काश्तकार लोहे से बने हलों से धरती का सीना चीर रहे।

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एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी राज्य में करीब 12 लाख पर्वतीय किसान परिवार कृषि उपकरण मसलन हल आदि के लिए बहुपयोगी बांज, फल्याट, मेहल, उतीश व सानण के लगभग ढाई लाख वयस्क वृक्षों का कटान करते हैं। इसके उलट हर वर्ष एक करोड़ से ज्यादा पौधरोपण कागजों तक ही सीमित है। भविष्य के बढ़ते जोखिम तथा जंगल बचाने के लिए शीतलाखेत के जागरूक युवाओं ने अपना जंगल मां स्याही देवी को समर्पित करते हुए विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा तथा जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर के वैज्ञानिकों को लौह हल का मॉडल दिया। 2012 में छह माह तक पर्वतीय किसानों के बीच शोध व अध्ययन के बाद लौह हल को मूर्तरूप दिया गया।

शीतलाखेत में ही कारखाना स्थापित कर स्थानीय लोगों को स्वरोजगार दिया गया। वर्तमान में चमोली गढ़वाल में 250, बागेश्वर में सौ जबकि अल्मोड़ा जनपद में करीब दो हजार काश्तकार पेड़ों पर निर्भरता खत्म कर लौह हल से खेतों को संवार रहे।

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इसलिए जरूरी है जंगल बचाना

दरअसल, जलवायु परिवर्तन व वैश्विक तापवृद्धि के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन तथा जंगलों के कटान को वैज्ञानिक बड़ा कारण मानते आए हैं। अब जबकि उत्तराखंड भी बढ़ती चुनौती से घिर चुका है। ऐसे में जंगलों का बेतहाशा कटान से सिमटता वनाच्छादित क्षेत्र भविष्य की घातक तस्वीर पेश कर रहा। आलम यह है कि प्रत्येक वर्ष लाखों खर्च कर करोड़ों पौधे लगाए जाते हैं, मगर रखरखाव का अभाव हरियाली बढ़ाने में रोड़ा बन रहा। इन हालात में लकड़ी का विकल्प लौह हल जंगल बचाने में मददगार बन सकता है।

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ताड़ीखेत के 42 किसानों ने लिया संकल्प

रानीखेत : जिला योजना के नवाचार में शामिल होने के बाद लौह हल को समेकित जलागम प्रबंधन योजना में भी अपना लिया गया है। पहले चरण में ताड़ीखेत ब्लॉक के फल्द्वाड़ी व दूणी गांव के 42 किसानों ने बहुपयोगी बांज आदि वृक्षों को न काटने का संकल्प लेते हुए लौह हल को अपनाया है। ब्लॉक कृषि प्रभारी गोविंद सिंह अधिकारी ने कृषकों को हल बंटवाए। बताया कि 1715 रुपये की लागत वाले हल के लिए किसानों को मात्र 20 प्रतिशत अंशदान जमा करना है। यह राशि हल के रखरखाव व मरम्मत में खर्च की जाएगी।

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पर्यावरण संरक्षण के लिए इसे मुहिम का रूप दिया जाएगा। ताड़ीखेत ब्लॉक ही नहीं पर्वतीय जिलों में बहुपयोगी वृक्षों का कटार रोक लौह अपनाने के लिए जनचेतना अभियान चलाएंगे। इसमें प्रगतिशील किसानों को भी साथ लिया जाएगा।

- प्रकाश जोशी, पर्यावरण प्रेमी


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