चाय सुधारेगी किसानों की माली हालत
दीप सिंह बोरा, रानीखेत हिमालयी राज्य को 'टी-टूरिज्म' से जोड़ने की कवायद के बीच अब काश्तकार भी चाय
दीप सिंह बोरा, रानीखेत
हिमालयी राज्य को 'टी-टूरिज्म' से जोड़ने की कवायद के बीच अब काश्तकार भी चाय उत्पादन में भागीदार बनेंगे। खास बात कि सहकारिता के जरिये पर्वतीय किसान ढलान वाले खेत या बंजर पड़ी माकूल जमीन पर बागान विकसित करेंगे। उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड (यूटीडीबी) ऐसे काश्तकारों को अपनी नर्सरी से सब्सिडी पर पौध उपलब्ध कराएगा। बेहतर उत्पादन पर बिकने वाली चाय पत्ती का पूरा लाभ कृषकों के खातों में जाएगा। इधर प्रदेश के चार जनपदों से प्रगतिशील किसानों ने न केवल दिलचस्पी दिखाई है बल्कि बागान विकसित करने के लिए बोर्ड को प्रस्ताव भी भेज दिया है।
दरअसल, असम की तर्ज पर उत्तराखंड में चाय उत्पादन की संभावनाओं के मद्देनजर करीब चार वर्ष पूर्व 'टी-टूरिज्म' का खाका तैयार किया गया था। इसका मकसद पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन विकास को बढ़ावा देना है। इसके लिए बाकायदा कुमाऊं व गढ़वाल में नए बागान विकसित करने की तैयारी भी चल रही है। इधर यूटीडीबी ने इस महत्वाकांक्षी योजना को धरातल पर उतारने के लिए सहकारिता को हथियार बनाया है।
इसके तहत पर्वतीय किसानों को चाय उत्पादन से जोड़ साझीदार बनाया जाएगा। ढलान वाले खेत हों या बंजर पड़ी जमीन पर बागान तैयार होंगे। यूटीडीबी उन्हें अनुदान पर पौधे उपलब्ध कराएंगे। पत्ती तैयार होने पर पूरा लाभ किसानों को मिलेगा। जबकि फैक्ट्री में चायपत्ती बनने के बाद बाजार में बिक्री से बोर्ड की आमदनी भी बढ़ेगी।
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इन जिलों के किसान हैं उत्सुक
= पिथौरागढ़, चंपावत (कुमाऊं), रुद्रप्रयाग व पौड़ी (गढ़वाल)
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यहां हैं फैक्ट्रियां
= नौटी (गढ़वाल), हरिनगर कौसानी, चंपावत व घोड़ाखाल भवाली (कुमाऊं), इनके अलावा राज्य के 22 विकासखंडों में 1074 हेक्टेयर क्षेत्रफल में नर्सरी, जहां एक करोड़ पौधे हैं तैयार
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पहाड़ में सिमटती खेती व मौजूदा चुनौतियों से पार पाने की दिशा में यह मील का पत्थर साबित होगी। स्थानीय स्तर पर किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी और चाय उत्पादन भी बढ़ेगा। हम अनुदान में पौधे देंगे। देखरेख को तकनीकी टीम निगरानी करेगी। हम इन किसानों से पत्तियां खरीदेंगे, पैकिंग कर बाजार में उतारने का जिम्मा हमारा रहेगा।
- बीएस नेगी, अध्यक्ष यूटीडीबी