Move to Jagran APP

कुमाऊं का कालापानी यानी सिरौत घाटी

संवाद सहयोगी, रानीखेत : सिरौत घाटी जिसे आज भी कुमाऊं का काला पानी कहते हैं। विकास से कोसों दूर ऐस

By Edited By: Published: Wed, 27 Apr 2016 05:04 PM (IST)Updated: Thu, 28 Apr 2016 09:03 AM (IST)
कुमाऊं का कालापानी यानी सिरौत घाटी

संवाद सहयोगी, रानीखेत : सिरौत घाटी जिसे आज भी कुमाऊं का काला पानी कहते हैं। विकास से कोसों दूर ऐसा उपेक्षित इलाका जहां कभी किसी बड़े अधिकारी या मंत्री के चरण नहीं पड़े। जिसे विकास की मुख्य धारा से तो न जोड़ा जा सका, उल्टा बुनियादी सुविधाओं की मांग उठाने पर इस घाटी को गेंद की तरह कभी रानीखेत तो कभी सोमेश्वर विधानसभा के पाले में जरूर सरका दिया। तंत्र की उपेक्षा का आलम यह कि 70 के दशक में 222 गांवों को समेटे इस घाटी को अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे से जोड़ने को स्वीकृत सड़क 43 वर्ष बाद भी 56 किमी का सफर तय नहीं कर सकी।

loksabha election banner

दरअसल, तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में पर्वतीय विकास मंत्री रहे सोबन सिंह जीना ने अलग-थलग पड़े सिरौत घाटी को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने का निर्णय लिया था। तब 1973-74 में द्वारसौं से काकड़ीघाट तक करीब 56 किमी सड़क को स्वीकृति मिली। शुरूआत में कुछ वर्षो तक काम तेजी से चला। रोड कटान भी हुआ। मगर बाद में काम ठप सा पड़ गया। इसे लेकर आंदोलन भी हुए। उत्तराखंड गठन बाद भी उम्मीद के उलट तंत्र का वही उपेक्षात्मक रवैया।

सिरौत संघर्ष समिति गठित कर भूतपूर्व सैनिक स्वरूप सिंह ने पूर्व फौजियों व ग्रामीणों को एकजुट कर बड़ा आंदोलन किया। नतीजा 2007 में सोमेश्वर पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक ने बजट की घोषणा व सड़क निर्माण शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया, मगर शुरुआत में विभागीय चुस्ती निशंक के जाते ही सुस्त पड़ गई। नतीजा घाटी के लोग आज भी पक्की सड़क के लिए तरस गए।

----------

अब राष्ट्रपति शासन बना रोड़ा

नैनीसार में पूर्व सीएम हरीश रावत के समक्ष द्वारसौं काकड़ीघाट रोड का मुद्दा जोरशोर से उठा था। तब रावत ने सड़क निर्माण को शीघ्र पूरा कराने के लिए लोक निर्माण विभाग अधिकारियों को नए सिरे से आगणन भेजने के निर्देश दिए थे। ताकि बजट स्वीकृत किया जा सके, मगर अब राष्ट्रपति शासन ने सिरौत घाटी वालों की उम्मीदों पर फिर पानी फेर दिया।

---------

एक और आंदोलन की सुगबुगाहट

सिरौत घाटी संघर्ष समिति के प्रभावी संघर्ष के बाद अब एक और आंदोलन की सुगबुगाहट तेज हो गई। ग्रामीणों ने जल्द सड़क निर्माण न होने पर सड़क पर उतरने की चेतावनी दी। पूर्व प्रवक्ता मोहन सिंह बोरा ने कहा कि मनबजूना, तुरकौड़ा, कारखेत, उरोली, भैसोली, टनवाणी, सिमोली आदि तमाम गांवों को यातायात सुविधा देने के उद्देश्य से सड़क को स्वीकृति मिली थी। रोष जताया कि 1981 तक द्वारसौं से टनवाणी तक जो सोलिंग कार्य किया था, वही स्थिति आज भी है। जगह-जगह गड्ढे होने से सफर खतरनाक हो गया। स्थानीय किसानों को भी अपनी उपज को बाजार तक पहुंचाने की चुनौती बनी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.