आपदा पीड़ितों का फूटा गुस्सा
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : आपदा राहत के नाम पर सरकार और प्रशासन के नुमाइंदे भले ही तमाम दावे करते न थक रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि आपदा से पीड़ित परिवार आज भी राहत को तरस रहे हैं। हालात इस कदर खराब हैं कि आपदा पीड़ितों को मरहम मिलने के बजाय वह सड़कों पर संघर्ष करने को मजबूर हैं।
तंत्र और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा झेल रहे खैरखेत के ग्रामीणों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। वर्ष 2010 की आपदा में खैरखेत की पहाड़ी ग्रामीणों पर ऐसा कहर बरपाया कि इस गांव में उनका जीना दुश्वार हो गया है। जनप्रतिनिधियों और प्रशासन ने गांव के दर्जनों परिवारों को विस्थापन का भरोसा तो दिया, लेकिन विस्थापन के मामले में आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। उपेक्षा से आजिज आए ग्रामीण सोमवार को जिला मुख्यालय पर आ धमके। ग्रामीणों ने कलक्ट्रेट में प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। ग्रामीणों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों पर आरोप लगाया कि चार साल बाद भी ग्रामीणों के विस्थापन की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जिस कारण यहां ग्रामीण जानवरों से भी बदतर जिंदगी जी रहे हैं। जान को जोखिम में रख जीवन बसर कर रहे ग्रामीणों ने प्रशासन पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर दस दिनों में उनके विस्थापन की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गई तो ग्रामीण 25 सितंबर को अल्मोड़ा सेराघाट मोटर मार्ग पर चक्का जाम करेंगे। ग्रामीणों ने बाद में इस संबंध में जिलाधिकारी को ज्ञापन भी सौंपा।
प्रदर्शन में संतोष राम, भगवान राम, किशन राम, श्याम लाल, शिव मंगल पांडे, जीवन राम, मदन राम, कैलाश राम, मदन बिष्ट, गोविंदी देवी, गोपाल सिंह, अशोक प्रसाद, सूरज प्रकाश समेत अनेक ग्रामीण मौजूद थे।