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हिचकोले लेते नजर आए सम्मानित मूर्ख

By Edited By: Published: Mon, 02 Apr 2012 01:29 AM (IST)Updated: Mon, 02 Apr 2012 01:34 AM (IST)
हिचकोले लेते नजर आए सम्मानित मूर्ख

वाराणसी : गंगा तट पर रविवार को देर रात तक ठहाके लगते रहे, जहां हजारों मस्तमौला काशीवासी हास्य के सागर में हिलोरें और हिचकोले लेते नजर आए। अवसर था, राजेन्द्र प्रसाद घाट पर आयोजित 43 वें महामूर्ख मेले का, जहां मूर्खो की हुई जमकर जुटान ने माहौल में रस भरा। अपनी पूरी भव्यता के साथ आयोजित मेले में चहुंओर मूर्खो का उत्साह और उमंग कुलांचे भरता नजर आया। मूर्ख कवियों की रचनाएं महामूर्खो को देर रात तक लोटपोट करती और गुदगुदाती रही।

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मेले में देश के विभिन्न भागों से पधारे हिंदी हास्य के लोकप्रिय कवियों ने जहां अपनी जोरदार और गुदगुदाती रचनाओं से श्रोताओं को विभोर किया, वहीं कवियित्रियों ने भी अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई। कवि सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने पढ़ा-'मंदिर में मूर्तियां चुराते करें धर्म की ऐसी तैसी-गंगा के निर्मलीकरण का सारा धन वे खा जाते हैं-गंगा की यह दशा देख लो-गंगा है जैसी की तैसी'।। कवि रामदुलार सिंह पंकज की रचना-'इक पल हंसी खुशी तुम दे दो-बस इतना उपकार बहुत है-दिल से दिल में प्यार पले नित-पंकज यह उपहार बहुत है' गंभीर लगी तो कानपुर के के.के.अग्निहोत्री ने 'तुम मुझसे क्या प्यार करोगे-तुम तो कारोबार करोगे' से माहौल में रस भरा। जबलपुर से पधारे कवि अर्चना अर्चन की रचना 'हंसी जुल्फे नहीं होती, हंसी आंचल नहीं होता-नजर के तीर मचलते तो दिल घायल नहीं होता' ने भी तालियां बटोरीं। कवि डण्डा बनारसी की रचना 'इक जवानी से कंपकपी छूटी-आग लाते नहीं तो क्या करते-उसने जब कह दिया लगाने को-हम लगाते नहीं तो क्या करते' और अंजनी कुमार शेष की कविता 'बुरा न मानो होली है, चढ़ी भांग की गोली है-बसपा की खाली झोली है, सपा के चंदन रोली है-बीजेपी और कांग्रेस की बदली-बदली बोली है' पर भी हंसी के फौव्वारे छूटे। कवि किशोर बनारसी की रचना 'अन्ना क भ्रष्टाचार आंदोलन ठंडे बस्ते में चल गइल-कांग्रेस क नीयत अनियति में बदल गइल-साइकिल क रफ्तार इतना ज्यादा बढ़ गइल-हाथ में कमल क फूल दबइले हाथी पर चढ़ गइल' ने भी माहौल में रस भरा। महाराष्ट्र के सुंदर मालेगावीं, कवि झगड़ू भइया, फिरोजाबाद के लुटरी लठ्, इलाहाबाद के बिहारी लाल अंबर, फैजाबाद के ताराचंद तन्हा, मिर्जापुर की पूनम श्रीवास्तव, लखीमपुर के फारुख सरल, कवि भूषण त्यागी, डॉ.धर्म प्रकाश मिश्र, विनय कपूर गाफिल व रेयाज बनारसी आदि ने भी अपनी रचनाओं से माहौल में रंग भरा। मेले में मध्यप्रदेश के सतना से आए कवि अशोक सुन्दरानी को सर्वश्रेष्ठ काव्य पाठ का अवार्ड मिला।

इससे पूर्व हिन्दी हास्य के तीन महाभूतों में से एक महाकवि चच्चा नाम से विख्यात स्व.अन्नपूर्णानंद की स्मृति में मेला एक कथ्य को केंद्र में रखकर आयोजित किया गया। दिवंगत कवि स्व.गणेश प्रसाद सिंह मानव के शती वर्ष व रामनवमी पर्व को केंद्र में रखकर कथ्य का नाम रखा गया-मानव जी की कविता। नगर के साहित्यकारों, पत्रकारों, अक्खड़ और फक्कड़ नागरिकों की संस्था शनिवार गोष्ठी के अध्यक्ष व साहित्यकार पंडित धर्मशील चतुर्वेदी के निर्देशन और कुशल संचालन में आयोजित मेले का शुभारंभ गर्दभ ध्वनि तथा नगाड़े की गूंज से हुआ। मेले में हुए विवाह और तलाक के वास्तविक पात्र थे ज्योतिषाचार्य डॉ.लक्ष्मण दास तथा उनकी धर्मपत्नी। लजाते-शर्माते और बारातियों की भीड़ में सकुचाते पहले वर और फिर कन्या की बारात विवाह मंडल में पहुंची। फिर विद्या नारायण, भानु, डॉ.पवन शास्त्री, पं.राजेन्द्र त्रिवेदी व अन्य पुरोहितों ने उटपटांग मंत्रों के साथ इस बेमेल जोड़े का विवाह रचा दिया, जिसे मंच पर पहुंचकर वर-कन्या ने उसी तरह तोड़ दिया जिस प्रकार भगवान राम ने शंकर का धनुष।

मेले में सुदामा तिवारी सांड़ बनारसी के संपादन व पं.राजेन्द्र त्रिवेदी 'एडवोकेट' के संयोजन में प्रकाशित शनिवार गोष्ठी के वार्षिक प्रकाशन 'पहली अप्रैल' का लोकार्पण मुख्य अतिथि विधायक त्रिभुवन राम और विशिष्ट अतिथि लक्ष्मी मेडिकल सर्जिकल केयर सेंटर के निदेशक डॉ.अशोक कुमार सिंह ने किया। मेले में कवियित्रों का सम्मान शनिवार गोष्ठी के प्रमुख पं.राजेन्द्र त्रिवेदी व बनारस बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष विवेक सिंह एडवोकेट ने किया। कालभैरव मंदिर के महंत पवन उपाध्याय ने नकाब बुर्का व बंधना थमा कर कवियों को सम्मानित किया। मेले में विधायक श्यामदेव राय चौधरी, सेट्रल बार के अध्यक्ष अशोक सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता अजय सिंह, पूर्व आयकर आयुक्त आर.के.सिंह, विधायक मधुकर पाण्डेय आदि भी मूर्ख बनने पहुंचे थे।

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