शनिवासरीय अमावस्या पर वृद्धि योग
वाराणसी : सूर्य के पुत्र व यमराज के बड़े भाई शनिदेव न्याय के देवता माने जाते हैं। सौर मंडल में पृथ्वी
वाराणसी : सूर्य के पुत्र व यमराज के बड़े भाई शनिदेव न्याय के देवता माने जाते हैं। सौर मंडल में पृथ्वी से सबसे दूरी पर होने के बाद भी चराचर जगत में इनका प्रभाव सर्वाधिक है। नवग्रह मंडल की 12 राशियों में सात पर इनका प्रभाव हमेशा रहता है। ज्योतिष शास्त्र में अमावस्या व शनि का संयोग शनि के शांत्र्थ्य (शांति के लिए) विशेष अवसर माना जाता है। एक वर्ष के दौरान 12 अमावस्या तिथि होती है। इनमें एक-दो बार शनिवासरीय अमावस्या आती है। आषाढ़ अमावस्या पर 24 जून को भी शनिवासरीय अमावस्या का मान है।
अमावस्या तिथि शुक्रवार को दिन में 10.52 बजे लग गई जो शनिवार की सुबह 8.25 बजे तक रहेगी। इस बार वृद्धि योग का संयोग होने से शनिवासरीय अमावस्या भी अपने आप में विशेष और अद्भुत रूप से लाभकारी होगी।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कार्यपालक समिति के सदस्य व ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार शनि शुभ हों या अशुभ, शनिवासरीय अमावस्या पर आराधना दोनों तरह के लोगों के लिए लाभदायी होता है। शनि की महादशा, अंतर-प्रत्यंतर, साढ़े साती, अढ़ैया या किसी भी अशुभ व मारक स्थिति के अलावा जिनका शनि शुभ हो उनके लिए भी शनि आराधना लाभकारी होती है।
पूजन विधान : शनिवासरीय अमावस्या पर प्रात: गंगा स्नान-ध्यान कर व्रत रह कर सायंकाल पीपल वृक्ष को दीपदान करना चाहिए। शनि आराधना में शनि सहस्त्रनाम, शनि स्रोत, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण आदि का पाठ करना चाहिए। शनि से संबंधित वस्तुओं यानी लोहे की सामग्री, काला तिल, काला वस्त्र, काली उड़द आदि के दान से शनि देव प्रसन्न होकर आराधकों पर कृपा दृष्टि बरसाते हैं।