परंपरा को निभाया, सुरों को संजोया
वाराणसी : गुरु-शिष्य परंपरा की कहानियां व किस्से तो बहुत बार सुनने को मिलते रहते हैं लेकिन इस पवित्र
वाराणसी : गुरु-शिष्य परंपरा की कहानियां व किस्से तो बहुत बार सुनने को मिलते रहते हैं लेकिन इस पवित्र भाव को शायद ही किसी ने मन में उतारा हो। मसलन, यह संभव भी कैसे होगा जब तक उचित मंच न मिले लेकिन नगर निगम एवं पहल ने इस परंपरा को काशी में जीवंत कर दिखाया है। यूनेस्को द्वारा क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क श्रेणी में वाराणसी को सिटी ऑफ म्यूजिक का दर्जा दिए जाने के उपलक्ष्य में संगीत महोत्सव सुर गंगा के तहत टाउनहाल में संगीत ग्राम बसाया गया है। यहां लगातार तीसरे दिन गुरुवार को भी स्वर साधना के गुर सिखाए गए।
पसीने से तरबतर नवोदित कलाकारों ने गुरु-शिष्य परंपरा के भाव को मन में उतारते हुए गीत-संगीत की विधाओं को जाना। संगीताचार्य पंडित गणेश मिश्रा ने राग विलावल में गुरु बिन ज्ञान कोई नहीं पावे के गायन से प्रशिक्षुओं को स्वर साधना करना सिखाया। इसके बाद उन्होंने राग शिवरंजनी में गंगा स्तुति से बच्चों को अभ्यास कराया। बाद में संगीताचार्य पं. संजय विधार्थी ने भी प्रशिक्षुओं को बालीवुड की संगीत की तमाम तरह की विधाओं को बताया। उनकी करतल ध्वनि एवं संगीत से नवोदित कलाकार अपने को बांधे रहे। यह दौर देर तक चलता रहा। इस दौरान 100 से ज्यादा प्रतिभागियों ने घंटों पसीना बहाया। संगीताचार्य पं. गणेश मिश्र ने कहा कि जिस तरह से इस भीषण गर्मी में संगीत के प्रति युवाओं ने रुचि दिखाई है, उससे गुरु-शिष्य परंपरा को काशी में एक बार फिर से परवाज मिला है। उधर, शाम के समय टाउन हाल में बने मुक्ताकाशीय मंच पर बच्चों ने दिन भर की विधाओं को रिहर्सल करके महसूस किया। उनके भावों व प्रस्तुतियों के हाव-भाव से दर्शक भी मुग्ध हो उठे।
अन्नू कपूर पहुंचे भैंसासुर घाट
वहीं दूसरी तरफ सुर गंगा महोत्सव के मुख्य आयोजन स्थल भैंसासुर घाट पर तैयारियां भी लगभग अंतिम चरण में हैं। कार्यक्रम के मद्देनजर बनने वाला मंच पूरी तरह से तैयार हो चुका है। शुक्रवार की शाम यहीं से सुर गंगा का विधिवत शुभारंभ होगा। उधर, कार्यक्रम की तैयारियों को जानने के लिए संचालक अन्नू कपूर रात्रि के समय मौके पर पहुंचे। उन्होंने वहां पर कुछ देर तक प्रस्तुति भी दी। कार्यक्रम संयोजक आलोक पारीख ने बताया कि मुख्य आयोजन स्थल की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं।