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नौका पर आएंगी देवी और हाथी पर विदाई

वाराणसी : शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती की आराधना-उपासना के पर्व वासंतिक नवरात्र के संकेतों को लेकर ज्य

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Mar 2017 01:20 AM (IST)Updated: Fri, 24 Mar 2017 01:20 AM (IST)
नौका पर आएंगी देवी और हाथी पर विदाई
नौका पर आएंगी देवी और हाथी पर विदाई

वाराणसी : शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती की आराधना-उपासना के पर्व वासंतिक नवरात्र के संकेतों को लेकर ज्योतिर्विद इस बार बेहद आशान्वित हैं। कारण यह कि मां जगदंबा का आगमन नौका पर और गमन हाथी पर हो रहा है। इसका फल सभी पहलुओं से सर्व कल्याणकारी व मंगलकारी माना जा रहा है। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर कार्यपालक समिति के सदस्य ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार दोनों ही तिथियों पर बुधवार का संयोग भी अद्भुत है जो कम देखने को मिलता है।

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द्वितीया तिथि का क्षय

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 29 मार्च से आरंभ हो रहा वासंतिक नवरात्र इस बार द्वितीया तिथि का क्षय होने से आठ ही दिन का होगा। इसका समापन पांच अप्रैल को रामनवमी पर हवनोपरांत किया जाएगा।

घट स्थापन मुहूर्त

घट स्थापन का मुहूर्त 29 मार्च को प्रात: 5.30 बजे से 6.30 के मध्य है। इस बार नवरात्र में प्रतिपदा तिथि सुबह 6.33 बजे तक ही है। इसके बाद अनुदया द्वितीया तिथि लग जाएगी। शास्त्र अनुसार घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में ही होनी चाहिए।

पारन दशमी तिथि में

नवरात्र व्रत का पारन दशमी तिथि अर्थात उदया तिथि अनुसार छह अप्रैल को किया जाएगा। नवरात्र नवमी तिथि पांच अप्रैल को दोपहर 12.51 बजे तक है। हवनादि इसके पूर्व ही कर लेना चाहिए। अष्टमी व्रत का पारन उदया तिथि अनुसार पांच अप्रैल को नवमी में करना चाहिए।

प्रतिपदा पर पूजन विधान

प्रात: स्नानादि कर संकल्पों के साथ ब्रह्माजी का आह्वान और आचमन पाद्य, अ‌र्घ्य स्नान, यज्ञोपवीत, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप- दीप-नैवेद्य से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचाग से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनादीप आदि का संवत्सर निवास व फलादीप का फल श्रवण करना चहिए। निवास को ध्वजा, पताका, तोरण से सुशोभित कर घट स्थापन व व्रत का संकल्प लेकर गणपति तथा मातृका पूजन करना चाहिए। वरुण पूजन कर माता भगवती का आह्वान और नवग्रह पूजन, षोडश मातृका स्थापना कर माता दुर्गा का विधिवत पूजन-अर्चन करना चाहिए।

नारी के विभिन्न भाव रूपों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक पर्व

शक्ति की अधिष्ठात्री भगवती की आराधना-उपासना का पर्व नवरात्र साल में दो बार पड़ता है। इसमें शारदीय व वासंतिक नवरात्र शामिल हैं। शारदीय नवरात्र में नौ दुर्गा व वासंतिक में नौ गौरी के व्रत, पूजन व दर्शन का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रकृति एवं नारी दोनों ही का स्वभाव समान है, दोनों के बिना न सृष्टि संभव है और न ही सृष्टि का विकास। नारी के विभिन्न भाव रूपों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के निमित्त नौ दिनी देवी उपासना काल ने पर्व का रूप धारण किया। देश के कई भागों में इसे महापर्व के रूप में देखा जाता है। वासंतिक नवरात्र का प्रारंभ ¨हदी नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। अत: इस नवरात्र को चैत्रीय नवरात्र भी कहा जाता है।

पहले दिन दो गौरी दर्शन

29 मार्च : प्रथमा व द्वितीया व्रत-दर्शन मुख निर्मालिका व ज्येष्ठा गौरी

30 मार्च : तृतीया दर्शन (सौभाग्य गौरी)

31 मार्च : चतुर्थी दर्शन (श्रृंगार गौरी)

एक अप्रैल : पंचम, विशालाक्षी गौरी

दो अप्रैल : षष्ठम्, ललिता गौरी

तीन अप्रैल : सप्तम्, भवानी गौरी

चार अप्रैल : अष्टम, मंगला गौरी

पांच अप्रैल : नवमी, महालक्ष्मी गौरी

छह अप्रैल : नवरात्र पारन


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