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कई पंडालों में की जाएगी सिर्फ कलश पूजा

वाराणसी : स्कूल के बच्चे भले ही कैलेंडर में दुर्गापूजा व दशहरा पर होने वाली छुट्टी की तारीखों पर नजर

By Edited By: Published: Mon, 26 Sep 2016 02:18 AM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2016 02:18 AM (IST)
कई पंडालों में की जाएगी सिर्फ कलश पूजा

वाराणसी : स्कूल के बच्चे भले ही कैलेंडर में दुर्गापूजा व दशहरा पर होने वाली छुट्टी की तारीखों पर नजर रख बैठे हैं, दुर्गापूजा पर नए कपड़े हो सकता है इस बार भी खरीदे जाएंगे परंतु इस बात पे यकीनन दावा कोई नहीं कर सकता कि बच्चे पंडालों में घूमेंगे व पूजा देखेंगे। अतीत के वर्षो की तरह दुर्गा पूजा मनाएंगे। कारण है गंगा में प्रतिमा विसर्जन पर लगाया गया प्रतिबंध। कई क्लब सिर्फ कलश स्थापित कर दुर्गापूजा करेंगे।

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बनारस के केदारखंड यानि गोदौलिया से ौंका के पूरे इलाके में ही मूर्ति निर्माता कारीगर अधिक रहते हैं, जहां पर उदासी का आलम है। मूर्ति बनाने के आर्डर का टोटा है। कहां अतीत में मूर्तिया बनना शुरू हो जाती थीं रथयात्रा के एक पखवारा पहले स्नान यात्रा से। गंगा मृदा, नगर वधू गृह मृत्तिका जैसी वस्तुओं को एकत्र कर सर्वजन की सहभागिता से मूर्ति निर्माण प्रारंभ होता था। भाद्रपद की संक्रांति के दिन बांस की फर्री की खपाची और पुआल से ढांचा बनाकर उस पर मिंट्टी चढ़ाकर गुलाबी रंग कर दिया जाता था। मातृनवमी के दिन मां दुर्गा के साथ ही अन्य देवी देवताओं को नेत्र प्रदान किया जाता था। महालया के पहले वस्त्र व शस्त्र विन्यास कर दिया जाता था।

सन् 2015 में गणेश प्रतिमा विसर्जन के चलते पहले वीभिषिका को और उसके काले साये में बीते दुर्गापूजा को लोग भूला नहीं पा रहे हैं। गंगा में प्रतिमा विसर्जन प रोक से लोगों में काफी निराशा देखी गई। दूसरी ओर सामान्य शिल्पकार दूसरी ओर इस तरह की रोक के बाद शिल्पकार न तो ज्यादा मूर्तियां बनाने को तैयार हैं और न ही हर रोज मूर्ति के नाम पर जामा तलाशी देने को तैयार दिखे। फलस्वरूप अधिकांश शिल्पकारों ने गिनी-चुनी प्रतिमाओं का आर्डर लिया है। वैसे भी कई संस्थाओं द्वारा सिर्फ कलश रखकर दुर्गापूजा करने की वजह से भी मूर्ति निर्माण की संख्या में कमी आई है। मिली जानकारी के अनुसार बंशी पाल, शीतल मुखर्जी व चीनू पाल जैसे शिल्पकारों के यहां पहले जैसी रौनक नहीं दिखाई दी। पांडेय हवेली के शिल्पकार बंशी पाल के शागिर्द शिल्पकार ने बताया कि पिछले वर्ष लगभग डेढ़ सौ प्रतिमाएं बनी थीं। इस बार लोग आर्डर देने ही नहीं आए। सिर्फ 26 मूर्तियों का आर्डर मिला है। ऐसे में ज्यादा मूर्तियां बनाना नुकसान को बुलावा देना था।


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