स्मार्ट शहर बनने के साथ करनी होगी जेब भी ढीली
वाराणसी : बनारस को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र सरकार ने चयन कर तो लिया है लेकिन यह भी सत्य है कि जि
वाराणसी : बनारस को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र सरकार ने चयन कर तो लिया है लेकिन यह भी सत्य है कि जितनी सुविधाएं बढ़ेंगी उसी के सापेक्ष स्थानीय निवासियों को अपनी जेबें भी ढीली करनी होगी। वजह, योजना के अनुसार जितना बजट केंद्र सरकार देगी उतनी ही धनराशि राज्य सरकार व नगर निगम प्रशासन को संयुक्त रूप से देनी होगी। इसके लिए नगर निगम को आत्मनिर्भर होना होगा। ऐसे में निश्चित ही नगर निगम को अपनी आय बढ़ानी होगी। इसके संकेत नगर आयुक्त डा. श्रीहरि प्रताप शाही ने शुक्रवार को संकेत भी दिए हैं।
नगर आयुक्त ने बताया कि केंद्र सरकार बनारस को स्मार्ट बनाने में पांच सौ करोड़ रुपये व्यय करेंगी। धनराशि राज्य सरकार और नगर निगम को खर्च करना होगा। प्रथम चरण में प्रोजेक्ट पर विशेषज्ञों की सहमति के बाद केंद्र सरकार 194 करोड़ अवमुक्त करेंगी। नागरिकों की सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी तो उनके उपर टैक्स का भी बोझ बढ़ेगा। बिना टैक्स में बढ़ोत्तरी के स्थानीय निकायों को पांच सौ करोड़ की व्यवस्था करना मुश्किल है। नगर आयुक्त श्रीहरि प्रताप शाही का कहना है कि विकास कार्यो को पूरा करने में सकारात्मक सोच और संकल्प आवश्यक है।
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अलग से कार्यालय होगा स्थापित
स्मार्ट सिटी योजना में अगल से कार्यलय स्थापित होगा। कार्यालय तकनीकि विशेषज्ञ और स्टाफ खर्च योजना के लिए अवमुक्त धनराशि से होगी। केंद्र सरकार प्रथम चरण में दो सौ करोड़ अवमुक्त करेगी लेकिन इसमें चार फीसद की कटौती अन्य मदों के लिए की जाएगी। इसी प्रकार राज्य सरकार और स्थानीय निकायों की ओर से स्मार्ट सिटी के मद में दी जाने वाली धनराशि में चार प्रतिशत कटौती की जाएगी।
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पूर्व की योजनाओं में भी अंशदान
जेएनएनयूआरएम के तहत 2007 से सीवर लाइन विस्तारीकरण एवं सुधार वर्षा जल निकासी, पेयजल योजना, कूड़ा प्रबंधन पर कार्य पाइप लाइन में है। जेएनएनयूआरएम योजना में 50 प्रतिशत केंद्र सरकार 20 प्रतिशत राज्य सरकार और 30 प्रतिशत स्थानीय निकाय का वित्तीय अशंदान है हालांकि नगर निगमों की वित्तीय स्थिति ठीक न होने से राज्य सरकार उसके अंशदान का भुगतान कर रहा है। वित्तीय अनुदान में कटौती कर नगर निगम के अंशदान की वसूली भी कर रहा है।
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कैसे होगा योजना क्रियान्वयन
पहले चरण में 20 और अगले हर दो साल में 40-40 शहरों को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए चयन किया जाएगा। हर स्मार्ट सिटी को अगले पाच साल तक केंद्र सरकार हर साल एक सौ करोड़ रुपए देगी।
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स्मार्ट सिटी बनाने पर फोकस क्यों?
शहरी विकास मंत्रालय के सोच के मुताबिक, देश में अभी शहरी आबादी 31 फीसद है, लेकिन इसकी भारत के जीडीपी में हिस्सेदारी 60 फीसद से ज्यादा है। अनुमान है कि अगले 15 साल में शहरी आबादी की जीडीपी में हिस्सेदारी 75 फीसद होगी। इस वजह से एक सौ स्मार्ट सिटी बनाने का लक्ष्य रखा गया है।