नैक के पास नहीं है रचनात्मकता का पैमाना
वाराणसी : एक दो दिन नहीं बल्कि चार दिनों तक राष्ट्रीय प्रत्यायन एवं मूल्यांकन परिषद (नैक) की टीम ने
वाराणसी : एक दो दिन नहीं बल्कि चार दिनों तक राष्ट्रीय प्रत्यायन एवं मूल्यांकन परिषद (नैक) की टीम ने बीएचयू का चप्पा-चप्पा देखा, जाना। ग्रेड भी दे दिया। मूल्यांकन के जो आधार रखे गए हैं वे एक सौ वर्ष पूरे कर रहे इस जीवंत विश्वविद्यालय की वास्तविक भूमिका का उल्लेख ही नहीं करते। चूंकि नैक मूल्यांकन सरकारी अनिवार्यता है लिहाजा यहां के लोगों ने मूल्यांकन में सहयोग किया लेकिन दिल से इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। मूल्यांकन तक इसलिए चुप रहे कि कवायद में बाधा न पड़े और अब बोले इसलिए कि बीएचयू के संदर्भ में नैक अपना पैमाना बदले। बता दें कि नैक ने मूल्यांकन के बाद बीएचयू के 'ए' ग्रेड में शुमार किया है।
राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आरपी पाठक तो सीधे और सपाट शब्दों में कहते हैं कि महामना पं. मदन मोहन मालवीय की इस थाती का मूल्यांकन वैश्वीकरण की परिधि में डालकर बनाए गए पैमानों से नहीं हो सकता। यहां का कुलगीत ही इसके अंतर्विषयी होने का संकेत देता है। यहां के कुछेक पाठ्यक्रम और विभाग तो ऐसे हैं जिसकी नींव ही भारत में 'पहला' का गीत सुनाते हैं। इसके मूल्यांकन के लिए सांस्कृतिक और रचनात्मकता का पैमाना तो नैक के पास है ही नहीं। ऐसे में इसका मूल्यांकन तो आधा-अधूरा ही रहेगा।
समाज से स्वास्थ्य तक : प्रो. पाठक कहते हैं कि यह ऐसा विश्वविद्यालय है जिसकी सीधी भागीदारी समाज से स्वास्थ्य तक है। शायद ही ऐसा कोई विश्वविद्यालय होगा जिसकी परिधि में अन्य विषयों की दीक्षा के साथ स्वस्थ समाज का सरोकार भी जुड़ा है। यह विवि की श्रेणी में भले ही शामिल हो लेकिन इसकी बुनियाद जुड़ी है राष्ट्रीयता से और इसका आकलन नैक ने नहीं किया।
प्रतीची और प्राची : इस परिसर में परंपरागत शिक्षा से अद्यतन शिक्षा तक का इंतजाम है। इसे नैक ने किस पैमाने पर रखा, यह सवाल यहां के लोग उठाते हैं। कहते हैं कि यह देश का अकेला विश्वविद्यालय है जहां नर्सरी से डीएससी की उपाधि तक दी जाती है। दूसरे विश्वविद्यालयों में संभवत: ऐसे इंतजाम नहीं हैं। शैक्षिक समग्रता का भाव रखने वाले विश्वविद्यालय की धारा सीजीपीए (क्यूमलेटिव ग्रेड प्वाइंट एवरेज) से नहीं मापी जा सकती।