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कभी अकबर को दी मात आज खुद वक्त से हारा

वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत जयापुर गांव के नाम पर यूं ही न

By Edited By: Published: Sat, 01 Nov 2014 02:38 AM (IST)Updated: Sat, 01 Nov 2014 02:38 AM (IST)
कभी अकबर को दी मात आज खुद वक्त से हारा

वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत जयापुर गांव के नाम पर यूं ही नहीं मुहर लगाई है। इतिहास गवाह है कि गांव वालों ने विश्व विजेता शहंशाह अकबर के सैनिकों को एक युद्ध में पराजित किया था। उसके बाद गांव का नाम जयापुर पड़ा लेकिन वीरगाथा को समेटे यह गांव आज वक्त से हार गया है। सांसद आदर्श गांव चयन उम्मीदवारी में नाम की चर्चा मात्र से यहां के लोगों की उम्मीदें भी अब परवान चढ़ने लगी हैं।

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चकरोड, पगडंडियों से आना-जाना

आजादी के छह दशक बाद भी यह गांव मुख्य संपर्क मार्ग से नहीं जुड़ सका। इस गांव की बदहाली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चकरोड व कच्ची पगडंडियों से होकर आना-जाना पड़ता है।

बिजली खंभे तो लगे पर प्रकाश नहीं

बिजली के खंभे तो लगे हैं पर गांव में प्रकाश की समुचित व्यवस्था नहीं। कहने के लिए सौर ऊर्जा की दो सोलर लाइटें हैं। स्ट्रीट लाइट की गांव में व्यवस्था नहीं है।

चहारदीवारी विहीन प्राथमिक विद्यालय

बुनियादी शिक्षा को प्राथमिक विद्यालय तो है लेकिन वही चहारदीवारी विहीन। गांव में मिडिल, माध्यमिक स्कूल की सुविधा नहीं।

4200 आबादी, जनगणना में 3337

तकरीबन दो किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले जयापुर गांव की कुल आबादी 4200 दर्ज की गई है। इसमें 2200 पुरुष और 2000 महिलाएं आबाद हैं। 2011 की जनगणना में 3337 लोगों को आबाद दर्शाया गया है।

मुस्लिम-धोबी छोड़ बाकी सभी जाति

जयापुर से जुड़े दो अन्य राजस्व गांवों में मानिकपुर व मूसेपुर में कुल पांच पुरवे हैं। इनमें दारापुर ठकुरान, इमलीपर, डोनवार में मुस्लिम-धोबी को छोड़ बाकी अन्य सभी जातियों के लोग आबाद हैं।

मूलभूत बुनियादी सुविधाओं का हाल

संपर्क मार्ग : जक्खिनी-राजातालाब मार्ग गांव के बगल से गुजरा है लेकिन जुड़ाव नहीं। जयापुर-जुमनीपुर की कच्ची सड़क बदहाल। गांव में कुल 40 कच्ची गलियां।

स्वच्छ शौचालय : आबादी के सापेक्ष मात्र 10 फीसद शौचालय बना है। गांव की साफ-सफाई को एक सफाई कर्मी तैनात है।

पंचायत भवन : साढ़े तीन दशक पहले बना पंचायत भवन जीर्ण-शीर्ण स्थिति में।

पेयजल : पेयजल के लिए हैंडपंप तो लगा है, कुएं भी हैं लेकिन गर्मी आते ही छोड़ देते हैं पानी। सूख जाता है कुंआ।

तालाब : एक बड़ा तालाब एक बीघे में जबकि तीन अन्य तालाब 10-12 बिस्वा में है। तालाब में पानी का अभाव होने से मत्स्य पालन नहीं होता है।

नलकूप : प्रथम पंचवर्षीय योजना में नलकूप लगा है लेकिन इसकी नालियां कच्ची हैं। निजी पंप का सहारा ज्यादातर किसानों के सिंचाई का माध्यम बना है।

सीवर : गांव पंचायत की ओर से सीवर की लाइन तो बनी है लेकिन आधी-अधूरी।

बीपीएल : वर्ष 2002 की बीपीएल सूची से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 50-60 लोगों का नाम ही गायब है।

आवास : झुग्गी-झोपड़ी व कच्चे मकानों में रहने वाले इन सभी गरीब परिवारों को एक अदद आवास की दरकार बनी हुई है।

मनरेगा : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत 200 मजदूरों का पंजीयन तो है लेकिन 50 फीसद को ही रोजगार मिल पाता है।

स्वयं सहायता समूह : राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गांव में दो स्वयं सहायता समूह काम कर रहा है।

कृषि भूमि : कृषि भूमि का एरिया तकरीबन 75 फीसद क्षेत्रफल में फैला है।

क्रेडिट कार्ड : इस गांव में कुल 125 किसानों किसान क्रेडिट कार्ड बना है।

आवंटन को जमीन : गांव में आवंटन के लिए जमीनें बची है लेकिन अवैध कब्जे में होने से आवंटन नहीं हो सका।

कुम्हारी मिंट्टी : कुम्हारी मिंट्टी के लिए 10 बिस्वा जमीन छोड़ी गई है जहां से कुम्हार बर्तन बनाने का काम करते हैं।

बेरोजगारी भत्ता : गांव में मात्र तीन लोगों को ही बेरोजगारी भत्ता मिलता है।

पेंशन : 80 को किसान पेंशन, सात को विकलांग पेंशन, 17 को विधवा पेंशन।

गल्ले की दुकान : सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत एक गल्ले की दुकान है।

आंगनबाड़ी केंद्र : गांव में एक आंगन बाड़ी केंद्र तो है लेकिन वह किराये के कमरे में संचालित होता है।

स्वास्थ्य केंद्र : कोई सुविधा नहीं है। उपचार के लिए लोगों को दो किमी दूर जक्खिनी जाना पड़ता है।

पशु चिकित्सालय : गांव में कोई पशु चिकित्सालय की सुविधा नहीं है।

खेलकूद मैदान : खेलकूद के लिए गांव में कोई भी मैदान नहीं है।

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चार सौ साल पुराना गांव का इतिहास

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भीठे पर कालेरंग की हनुमान मूर्तियां

किवदंतियों के अनुसार लगभग 400 वर्ष पूर्व जयापुर गांव में बहुत बड़ा भीठा था। उस पर कालेरंग की हनुमान की मूर्तियां विराजमान थीं। इन मूर्तियों को विखंडित करने को यहां पहुंचे अकबर के सैनिकों से गांव के लोगों का युद्ध हुआ था। ग्रामीणों से हारने के बाद सैनिक वापस चले गए तभी से इस गांव का नाम जयापुर पड़ा। हालांकि आज की तारीख में न तो काले रंग की हनुमान मूर्तियां बचीं न ही भीठा वजूद में रहा। चकबंदी में भीठा लोगों को आवंटित हुआ। लोगों ने इसे समतल करा खेती-बाड़ी शुरू की।

पीएम बनने से पूर्व मोदी ने की बात

प्रधानमंत्री बनने से पूर्व नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा सीट के लिए हुए मतदान से ठीक दस दिन पहले गांव में हाइटेंशन तार के टूटकर गिरने और इससे तीन बच्चियों के झुलस जाने पर पीड़ित किसान से मोबाइल के जरिए बात की थी। यह फोन ग्राम प्रधान दुर्गावती देवी के देवर श्रीनारायण सिंह के मोबाइल पर आया था।

चुनाव बाद आने का दिया था भरोसा

दुर्घटना में स्थानीय जिला प्रशासन की ओर से पीड़ित परिवार को किसी तरह की मदद न मिलने की बात पर मोदी ने दुख जताते हुए कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वे खुद आपके गांव को देखेंगे। समझा जाता है कि इसके मद्देनजर पीएम मोदी ने जयापुर गांव को सांसद आदर्श ग्राम चुनने का मन बनाया है।


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