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अच्छे दिनों का उजियारा, हारा अंधियारा

जागरण संवाददाता, वाराणसी : ज्योति पर्व श्रृंखला के महाउत्सव दीपावली पर रोशनी की झमाझम बरसात से समूचा

By Edited By: Published: Fri, 24 Oct 2014 12:41 AM (IST)Updated: Fri, 24 Oct 2014 12:41 AM (IST)
अच्छे दिनों का उजियारा, हारा अंधियारा

जागरण संवाददाता, वाराणसी : ज्योति पर्व श्रृंखला के महाउत्सव दीपावली पर रोशनी की झमाझम बरसात से समूचा शहर नहा गया। सांध्य प्रहर से ही गलियों, सड़कों पर जगर मगर मानो धरती पर रोशनी का समंदर लहराया। रंग बिरंगे राकेट-पटाखों ने हौसला दिखाया और लहराते-बलखाते आसमान छू आया। हर ओर इस कदर उजाला कि दिन-रात का फर्क मुश्किल और श्री-समृद्धि के अच्छे दिनों की उम्मीद का जन-जन के अंतरमन में फैला उजियारा। कार्तिक अमावस्या की रात धर्म-परंपरा की थाती व नन्हें दीपों की लपलपाती बाती के आगे हारा अंधियारा।

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ज्योति पर्व श्रृंखला के प्रथम त्योहार धन त्रयोदशी पर लोगों ने पहला दीप जलाया। दूसरे दिन नरक चौदस व रामभक्त हनुमान का जन्मोत्सव मनाया और अमावस्या पर तीसरी निशा में असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक उत्सव दीप महापर्व का मौका आया। शाम ढलते ही लोगों ने आराध्य देव के मंदिरों में धूप-दीप दिखाया और अपने घर आंगन के साथ ही पूरा इलाका रोशन कर डाला। चहारदीवारी, छतों की मुंडेर व बरामदों को विद्युत झालरों की रोशनी से इस कदर प्रकाशित किया जैसे वनवास से अब ही लौट रहे हों भगवान राम और त्रेता युग में जी लिया। इस राह से भगवती महालक्ष्मी गुजरी हों और श्री समृद्धि का पिटारा खोल दिया। रंग-बिरंगी आतिशबाजी से आसमान को भी रोशनी की सौगात दिया। उल्लास से सराबोर और उमंग का न कोई ओर छोर। प्रसन्नता का इजहार करने की आमने सामने तो सेलफोन या ई मेल या व्हाट्सऐप तक पर होड़। बच्चे अनार -फुलझड़ी जलाते तो युवा पटाखे दगाते, राकेट छुड़ाते और हर आवाज पर उछल से जाते। कोई चटाई बजाता तो कई आवाजा बम से दम दिखाता। आतिशबाजी की आसमान में छिटक पड़ती रोशनी व ध्वनि से प्रफुल्लित हो जाता तो जलेबी की रोशनी में उछलकूद मचाता। उल्लास की ऐसी रौ कि हर मन की कामना यह कि प्रकाश के सागर में डूबी खुशियों भरी इस रात की कोई सुबह ही न हो।

मठ मंदिर हुए रोशन

दीप पर्व पर मठ मंदिरों में साधु-संतों व बटुकों ने दीप जलाए। गृहस्थों ने भी आराध्य देव-संतों के सानिध्य में सिलसिले को बढ़ाया। मिष्ठान-पकवान अर्पित कर भोग लगाया। प्रसाद स्वरूप इसे खुद खाया, परिवारीजनों-दोस्तों और शुभचिंतकों को भी खिलाया। संत मत अनुयायी आश्रम मठ गड़वाघाट, सतुआ बाबा आश्रम, नारायण स्वामी मंदिर समेत मठ मंदिरों में दीपावली की रौनक छाई।

शुभ लाभ के लिए अनुष्ठान

ज्योति पर्व पर श्री-समृद्धि की अधिष्ठात्री भगवती महालक्ष्मी और गणपति देव की आराधना का योग बना। उनके आगमन की प्रतीक्षा में लोगों ने दरवाजे पर दीप जलाए। घर, आंगन, रसोई से लगायत हर कमरे को सजाए और शाम के साथ ही भगवती का पूजन किया। कुछ लोगों ने शाम 6.59 बजे से 8.55 बजे तक स्थिर वृष लग्न और रात 1.27 बजे से 3.41 बजे तक सिंह लग्न में या चौघड़िया मुहूर्त भी अनुष्ठान किया।

लेखा बही पूजन और खोले नए खाते

व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में मुहूर्त अनुसार लक्ष्मी-गणेश का विग्रह विराजमान कराया। विधि विधान से धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित कर पूजन की रस्म निभाया। लेखा -बही की पूजा की और नए खाते भी खोले।

बाजार भी हुआ जगमग

दीप महापर्व पर बाजार खूब जगमग रहे। दिन भर बिक्री से फुर्सत नहीं तो शाम के साथ रोशनी की गंगा बही। सुबह से रात तक लोगों ने मिष्ठान की खरीदारी की तो परंपरा के अनुसार भइया दूज के लिए भी भड़ेहर और चीनी के मिठाइयां और खील बताशे खरीदे।

दक्षिण भारतीयों में अलग ही उल्लास

लघु भारत के रूप में ख्यात काशी के पक्के महाल की घनी बस्तियों में अलग ही नजारा। हनुमानघाट व दुर्गाघाट क्षेत्र में दक्षिण भारतीय समाज के लोगों ने सुबह ही पूजन-अर्चन व आतिशबाजी की। भोर में स्नानादि के उपरांत नए वस्त्र धारण किए। महिलाओं ने घरों के सामने रंगोली सजाई। परिवारीजनों संग कुलदेवता व हनुमानजी का विशेष पूजन-अर्चन किया। तरह-तरह के पकवान व मिष्ठान्न बनाए। शाम को एक-दूसरे के घर जाकर दीपावली की शुभकामनाएं दीं।

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लखेद दिया दरिद्दर

कार्तिक अमावस्या की रात बीतने के साथ दुख दारिद्रय का अंधेरा छंटने की कामना से दरिद्दर लखेदा गया। सूप बजाते गीत गाते लोगों ने घूर या मोहल्ले-कालोनी के कूड़ेदान के पास यह रस्म निभाई।


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