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बीएचयू में मत्स्य पालन के बहुरेंगे दिन

By Edited By: Published: Tue, 22 Apr 2014 01:01 AM (IST)Updated: Tue, 22 Apr 2014 01:01 AM (IST)
बीएचयू में मत्स्य पालन के बहुरेंगे दिन

वाराणसी : बीएचयू में वर्षो से बंद पड़े मत्स्य पालन के दिन बहुत जल्द बहुरने वाले हैं। कृषि प्रक्षेत्र स्थित मत्स्य पालन प्रक्षेत्र एक बार फिर मछलियों से भरे तालाबों से गुलजार होगा। बीएचयू कुलपति डा. लालजी सिंह हैदराबाद स्थित अपनी मातृ संस्था सेंटर फार सेल्यूलर एंड मालिक्यूलर बायोलाजी के देश-दुनिया के मूर्धन्य मत्स्य वैज्ञानिकों में शुमार प्रो. क्षितिज मजुमदार को निमंत्रण दिया है। उन्होंने इसके लिए हामी भी भर दी है। उम्मीद जताई जा रही है कि मई के दूसरे सप्ताह से मछली फार्म के सभी तालाब पानी से लबालब हो जाएंगे और मछलियों का पालन शुरू हो जाएगा।

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22 तालाबों से भरा है बीएचयू : कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. आरपी सिंह बताते हैं कि बीएचयू में मत्स्य प्रक्षेत्र सहित पूरे परिसर में कुल 22 तालाब हैं। अधिकतर तालाबों की स्थिति अभी भी अच्छी है। मछली प्रक्षेत्र को नया जीवन देने के बाद विवि प्रशासन परिसर के अन्य तालाबों की ओर भी ध्यान देगा। तालाबों को नया जीवन देने से भूजल में इजाफा व मछलियों से आर्थिक लाभ पहुंचेगा।

पहले भी हुआ है मत्स्य पालन : बीएचयू में वर्षो से चल रहे मछली पालन पर विगत कुछ वर्षो से ग्रहण लग गया। इसके लिए इच्छाशक्ति की कमी प्रधान कारण है। प्रो. पंजाब सिंह के समय में मत्स्य पालन के लिए लगभग 23 लाख रुपए का अनुदान मिला था। प्रो. डीपी सिंह ने आपने कार्यकाल में इसे सुंदर बनाने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने तालाब में दो नावों को चलवाया था। उसका प्रति ट्रिप दस रुपया किया तय किया गया था। बताया जाता है कि दोनों नौकाएं अनदेखी के कारण पानी में रखे-रखे नष्ट हो गई। इन तालाबों में देशी और विदेशी मछलियों का पालन होता था। देशी में मुख्य रूप से रोहू जो पानी की सतह पर रहती है। कतला पानी के बीच में और बिल्कुल नीचे रहने वाली नैन मछलियों का पालन होता था। विदेशी में सिल्वर, ग्रास आदि शामिल थी।


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