पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुकता जरूरी
वाराणसी : प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी पर्यावरण संरक्षण उल्लेख मिलता है। इसमें पंचभूत-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश के महत्व को बहुत पहले ही प्रतिपादित किया जा चुका है। बावजूद हम निहित स्वार्थ के चलते पर्यावरण की अनदेखी कर रहे हैं। इसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ रहा है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुकता जरूरी है।
रानी पद्मावती तारा योगतंत्र आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, शिवपुर में आयोजित दो दिवसीय 'संस्कृत वागंमय में पर्यावरण विमर्श' विषयक संगोष्ठी में समापन सत्र में शुक्रवार को वक्ताओं ने कहा कि पृथ्वी के अस्तित्व के लिए पर्यावरण संरक्षण बेहद जरूरी है। मुख्य वक्ता संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय बीएचयू के प्रो. हरिश्वर दीक्षित ने कहा कि मानवीय मूल्यों को व्यवहार में लाने का समय आ गया है। इसके लिए हमें आचार-संस्कार शुद्ध भी रखना होगा तभी पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकता है। विशिष्ट वक्ता तुलनात्मक धर्म दर्शन, संस्कृत विश्वविद्यालय के डा. हरिप्रसाद अधिकारी ने कहा कि जबतक हम चित्त शोधन नहीं करेंगे। तबतक पर्यावरण संरक्षित नहीें किया जा सकता है। अध्यक्षता प्रो. कृष्ण कांत शर्मा, स्वागत पं. रत्नेश झा, संचालन डा. कमलेश झा व धन्यवाद ज्ञापन प्राचार्य डा. वेदानंद झा ने किया।