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जंगली जानवर का हमला, महिला घायल

शुक्लागंज, जागरण संवाददाता : बुधवार देर रात लालताखेड़ा गांव में घर के बाहर सो रही महिला पर किसी जंगली

By Edited By: Published: Thu, 26 Nov 2015 07:57 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2015 07:57 PM (IST)
जंगली जानवर का हमला, महिला घायल

शुक्लागंज, जागरण संवाददाता : बुधवार देर रात लालताखेड़ा गांव में घर के बाहर सो रही महिला पर किसी जंगली जानवर ने हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया। महिला के चीखने और शोर मचाने पर घर के लोग दौड़ पड़े लेकिन तब तक हमलावर जानवर उनकी नजरों से ओझल हो चुका था। खून से लथपथ महिला को घर के लोगों ने जिला अस्पताल पहुंचाया जहां उसे डाक्टरों ने गुरुवार को छुंट्टी देकर घर भेज दिया। घटना को लेकर गांव में लोग तरह-तरह की चर्चाएं कर रहे हैं। सूचना पाकर पहुंची वन विभाग की टीम ने मुआयना किया और किसी जंगली जानवर के पंजे होने की बात कहकर वापस लौट गई। वन विभाग के रेंजर राजीव मिश्रा ने बताया कि सूचना आई थी टीम को भेजा गया था लेकिन बाघ जैसे कोई पदचिह्न नहीं मिले हैं। टीम ने बाघ जैसे जानवर के होने से साफ इंकार किया है। टीम ने बाघ के पंजे न होने की बात भी ग्रामीणों से कही है। ग्रामीणों की मानें तो वन विभाग के लोगों का कहना है कि पंजे बाघ के नहीं अन्य जानवर के हैं।

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लालताखेड़ा गांव के रहने वाले हरीशंकर की पत्नी सियादुलारी अपने घर के बाहर सो रही थीं। बुधवार रात सवा 11 बजे के करीब किसी जंगली जानवर ने उनके मुंह पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। सियादुलारी के बेटे पवन और बेटी सीता ने बताया कि मां पर हमला करने वाले जानवर को वह लोग देख नहीं सके। मां के खून बहता देख कर घर के लोग उन्हें लेकर तुरंत अस्पताल चले गए थे। इसलिए बाघ था या कोई अन्य जानवर था कुछ बता नहीं सकते। उधर घटना को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि अगर कोई छोटा जानवर होता तो गांव की भैंसें खूंटे तोड़कर भागती नहीं। ग्रामीणों में बेनीमाधव का कहना है कि जानवर के हमले से उनकी भैंस घायल हैं। वहीं बिंदाप्रसाद का कहना है कि जानवर की दहशत से उनकी तीन गाय खूंटा तोड़ कर भाग गईं थी। हरीशंकर, श्यामू, अंबिका, कुसुमा का कहना है कि बाघ हो चाहे न हो लेकिन गांव में बाघ की दहशत से लोगों की नींद उड़ी हुई है। बता दें कि पूर्व में साल भीतर कभी गढ़ीसिलौली तो कभी शंकरपुर व कन्हवापुर गंगा कटरी में बाघ के होने की दहशत से ग्रामवासियों का कई महीनों तक चैन हराम रहा था। वन विभाग के आला अधिकारी तक इन इलाकों में बाघ को पकड़ने वाले पिंजरों समेत महीनों तक डेरा डाले रहे थे। यही नहीं बाघ को पकड़ने के लिए हाथी तक को बुलवा लिया गया था। करोड़ों रुपए खर्च के बाद भी बाघ हाथ नहीं आ सका।


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