मौसम की मार, किसानों ने मानी हार
शुक्लागंज, संवाद सहयोगी: बरसात न होने से मौसम की मार झेल रहे किसानों ने अब फसल को बचाने में असमर्थत
शुक्लागंज, संवाद सहयोगी: बरसात न होने से मौसम की मार झेल रहे किसानों ने अब फसल को बचाने में असमर्थता जताते हुए हार मान ली है। लाखों रुपए कर्ज लेकर फसलें बोने के बाद मौसम की बेरुखी ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। खेतों में मुरझाई हुई फसलों को देख किसान के पास सिर्फ अपना सिर पकड़ कर रोने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। अधिकांश किसान अभी भी बरसात होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
हाजीपुर चौकीक्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांवों में रह कर लौकी, तरोई, धान, मक्का, तिल्ली, मूंगफली आदि की खेती करने वाले किसानों में मुन्नू शुक्ला, अशोक, विनोद, स्वामीदीन, सागर, नन्हेलाल, होरीलाल, अन्नू ¨सह आदि ने बताया कि उन्होंने लाखों रुपए खर्च कर खेतों में खरीफ की फसलें बोई थीं पर इस वर्ष नाममात्र बारिश होने से फसलें बर्बाद होने की कगार पर आ गई हैं। प्रत्येक तीन दिन में पानी लगाना पड़ रह है, जिसका खर्च उठा पाने में किसान असमर्थ हैं। पूर्व में हो चुकी ओलावृष्टि से भी किसानों को नुकसान सहना पड़ा था। सरकार की ओर मिलने वाली मदद भी तमाम गांवों के किसानों तक नहीं पहुंच पाई थी। पूर्व में बरसात हुई भी तो कुछ इलाकों में पानी बरसा और कुछ में सूखा रह गया। फसलों की हालत देख किसान आंसू बहाने को मजबूर हैं।
300 बीघे खेती पर मंडरा रहा खतरा
क्षेत्र के लंगड़ापुर, फत्तेपुर, मिर्जापुर, रौतापुर, बरधना, हाजीपुर, अगेहरा, अतरी, रामपुर, सिद्धनाथपुरी, बहरौला सहित एक दर्जन से अधिक गांवों में रहने वाले किसानों के अनुसार उनकी करीब तीन सौ बीघे खेती पर बर्बादी के काले बादल मंडरा रहे हैं। फसलों को बचाने के लिए किसान तमाम कोशिशें कर रहा है पर प्रकृति की मार के आगे असहाय हो गया है।
चुकाने पड़ रहे 150 रुपये घंटे
गांवों में रहने वालों किसानों के अनुसार अभी तक वो भगवान से मना रहे थे कि बरसात हो जाए तो उनकी दाल रोटी चलती रहेगी। इस बार ईश्वर के भी रुष्ट होने से किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच रहा है। इससे बचने के लिए कर्ज लेकर किसान फसलों को बचाने की जुगत में जुटा है। किसानों के अनुसार खेतों में इंजन चलाने के लिए करीब 150 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से खर्च करने पड़ते हैं। बताया एक दिन में करीब पांच से छह घंटे तक फसलों में पानी लगाया जाता है। सूखा पड़ा होने के कारण हर तीसरे दिन फसलों की पानी से ¨सचाई की जाती है। इससे लागत से अधिक खर्च होने के बाद भी पैदावार कम है।