कहीं छत गायब तो कहीं भरे कंडे
पुरवा, संवाद सहयोगी: देश को स्वच्छ और सुंदर बनाने की कवायद एक अर्से से चल रही है लेकिन आज तक यह साक
पुरवा, संवाद सहयोगी: देश को स्वच्छ और सुंदर बनाने की कवायद एक अर्से से चल रही है लेकिन आज तक यह साकार रूप नहीं ले सकी। एक तरफ जहां सोच वहां शौचालय का नारा दिया जा रहा है। तो दूसरी तरफ आज भी गांव की कौन कहे शहर क्षेत्र के लोग भी खुले में ही शौचालय जाते हैं। सरकार की मदद से शौचालय बनाने की योजना के नाम पर केवल और केवल खेल ही हो रहा है। एक तो सरकार से मिलने वाली अपर्याप्त रकम रही सही कसर इस रकम के नाम पर गोल माल करने वाले पूरी कर रहे हैं।
व्यक्तिगत शौचालय की असली तस्वीर देखने के लिए पुरवा विकास खंड के अंबेडकर ग्राम टीकरखुर्द में बने शौचालयों पर नजर डाली गई तो चौकाने वाले परिणाम सामने आए। जो शौचालय दिखे उनमें किसी में छत नहीं तो किसी में दरवाजा गायब मिला। इतना ही नहीं हास्यापद ²श्य तो तब सामने आया जब एक शौचालय के अंदर गोबर के कंडे भरे मिले। ग्रामीणों का कहना है कि शौचालय बनाते वक्त इतने कम गहराई के गड्ढे खोदे गए कि छह माह मे ही सब टैंक भर गये। वहीं सीमेंट की टीन मामूली आंधी में उड़ गयी। कुछ की टूटकर गिर गयी और हल्के दरवाजे का भी अता पता नहीं है। गावं के दीपू कहते है कि टैंक भर जाने पर सफाई कैसे करें। गांव के सफाई कर्मी आते नहीं है। इसलिए उन्होने शौचालय का प्रयोग कंडे भरने के लिए कर लिया है। ऐसे ही गनेश, गुरूप्रसाद और रामसजीवन ने बताया कि नाम के शौचालयो का प्रयोग संभव नहीं है। इससे अच्छा तो जब पैसे होंगे तो दूसरा शौचालय बनवा लेंगे।
कम कीमत पर ठेकेदार का मुनाफा
नाम के शौचालयो के जरिए स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का सपना देखने वाली सरकारें भी व्यवस्था देने के नाम पर कंजूसी बरतती हैं। पूर्व में शौचालयों के निर्माण मे 10हजार 900 रुपए की धनराशि स्वीकृति की गयी थी जो अब 12 हजार कर दी गई है। उसमें भी ठेकेदारों का निर्माण कराकर बचत करना भी टेढ़ी खीर है।
आज तक नहीं हुई बढ़ोत्तरी
ग्रामीण क्षेत्रों में 5 करोड़ो का बजट शौचालयों के लिए दिया गया। लेकिन शहरी क्षेत्रो के लिए इस सुविधा में अब तक कंजूसी ही बरती गयी है। नगर पंचायत पुरवा में अब तक डूडा योजना के अंर्तगत लगभग दो सैकड़ा शौचालय बनाये गये है। जो वर्ष 2011 की जनगणना के हिसाब से नगर के कुल 3904 परिवारों एवं 24504 जनसंख्या है। इसमें आज तक 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी भी हो चुकी है। इसके लिए वह काफी नहीं है। इसके चलते लगभग 25 फीसद आबादी आज भी खुले आसमान के नीचे शौच करने के लिए मजबूर है।
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जिन लाभार्थियों का आवेदन आयेगा। उनके लिए उच्चाधिकारियों से नगर पंचायत शौचालयों की मांग कर समस्या का समाधान करायेगी। वहीं दलित बस्तियों में बायोगैस योजना से भी समस्या का निस्तारण कराया जायेगा।
- उमेश कुमार मिश्रा, अधिशासी अधिकारी नगर पंचायत