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चांद उगे चले आना पिया कोई जाने न..

सुलतानपुर : दूंगी तुझे नजराना पिया..कोई जाने न, चांद उगे चले आना..पिया कोई जाने न..। श्रृंगार जब रस

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 10:32 PM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 10:32 PM (IST)
चांद उगे चले आना पिया कोई जाने न..

सुलतानपुर : दूंगी तुझे नजराना पिया..कोई जाने न, चांद उगे चले आना..पिया कोई जाने न..। श्रृंगार जब रस बनकर टपकता है तो माधुर्य में लिपटी रचनाएं प्रकट होती हैं। उसे सुनकर श्रोता एकाग्र हो उन पंक्तियों में अपने को खो देता है। भूल जाता कि..वो कहां है और क्यों आया। ये रचनाओं का ही जादू होता है, जो सिर चढ़कर बोलती हैं। सोमवार की रात शहर के चौक घंटाघर क्षेत्र में ऐसा ही नजारा दिखा। मंचस्थ कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने जब यह कहा कि तालियां नहीं, आज रचनाओं में आप सब रच-बस जाओ। फिर क्या था पंक्तियां आगे बढ़ती रहीं और लोग बेसुध हो वेशकीमती शब्दश्रंखला पर निहाल होते रहे। आयोजन था नवसंवत्सर की पूर्व संध्या पर दसवें कवि संमेलन का। गीतों की दुनिया के नायाब नगीनों से मंच सजा था और रात आठ बजे से वहां बैठी हजारों की भीड़ सबह तलक डटी रही।

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दीप प्रज्ज्वलन, फिर मां सरस्वती की वंदना के साथ भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने कार्यक्रम का औपचारिक उदघाटन किया। फिर हास्य-ओज के रचनाकारों ने शमा बांधा। रात ज्यो-ज्यों गहराने लगी कवि सम्मेलन उतना ही घनीभूत होने लगा। आधी रात में पाठ करने श्रृंगार के सशक्त हस्ताक्षर कवि बुद्धिनाथ मिश्र खड़े हुए और गाया..'जाग रही चौखट की सांकल..जाग रही पनघट पर छागल, सो जाएं जब घाट नदी के..तू चुपके से आना.पिया कोई जाने न। सोना देंगे चांदी देंगे..पलभर में सदियां जी लेंगे, छूटेगा कजरा.टूटेगा गजरा, पूछेगा सारा जमाना..पिया कोई जाने न। पंखुरी-पंखुरी ओस नहाए.पोर-पोर वंशी लहराए, तू गोकुल है मेरे मन का.मै तेरी बरसाना..कोई जाने न। कवि के भावों से ओतप्रोत श्रोता पूरी तरह रसधार में गोते लगाते रहे। इसके पूर्व दिल्ली से आई कवित्री डॉ.कीर्ति काले ने भी श्रोताओं के मन को पढ़ा और श्रृंगार की रचनाओं की झड़ी लगा दी। उन्होंने गाया ..'उड़ चला है दिन लगाए धूप वाले पर..याद फिर बुनने लगी है मखमली स्वेटर। गुदगुदी करने लगी जब से गुलाबी सर्दियां..नाचती हैं अनमनी होकर तभी से उंगलियां। गुनगुने दो नर्म गोले ऊन के लेकर, याद फिर बुनने लगी हैं मखमली स्वेटर। इन रचनाओं को सुनकर श्रोता मानो ठहर से गए हों। उनके बाद ओज के नवोदित रचनाकार प्रख्यात मिश्र ने मंच पर ऐसे दहाड़ लगाई कि ताली बजाने उठे हाथ देर तक गड़गड़ाते रहे। उन्होंने वर्तमान राजनीति पर भी रचनाएं प्रस्तुत कीं। जाहिल सुलतानपुरी की अध्यक्षता में शुरू हुए कार्यक्रम में फारूक सरल, अभय उर्फ निर्भीक, अविनाश शुक्ल उर्फ शेष, अशोक मिश्र टाटंबरी, जमुना उपाध्याय, रामकिशोर तिवारी आदि ने अपनी रचनाओं से शमा बांधे रखा।

इनसेट.. हास्य ने खूब गुदगुदाया

हास्य कवि राजेंद्र पंडित पहली बार इस आयोजन में बुलाए गए थे। उन्होंने अपनी रचना जब पढ़ी .'गड्ढे में गिर गए' तो भीड़ हंसते-हंसते लोटपोट हो गई। इसी कविता में चुटीले व्यंग्यों ने व्यवस्था की कलई खोली। कल और आज के परिवर्तन, पुलिस और अपनों की सोच के बीच की दूरी को बखूबी स्पष्ट किया।

इनसेट..इनकी रही मौजूदगी

कार्यक्रम के आयोजन समिति में प्रमुख रूप से पालिकाध्यक्ष प्रवीन अग्रवाल मौजूद रहे। भाजपा के शहर विधायक सूर्यभान ¨सह, देवमणि दूबे, सीताराम वर्मा, ओमप्रकाश पांडेय बजरंगी, सरदार बलदेव ¨सह, रज्जन सेठ, करुणा संकर द्विवेदी, शिवकुमार अग्रहरि, भाजपा काशी प्रांत अध्यक्ष लक्ष्मणाचार्य, समाजसेवी शिवकुमार ¨सह, संगठन महामंत्री रत्नाकर, डॉ.संतोष ¨सह, डॉ.केसी त्रिपाठी, डा.एके ¨सह, मोहित ¨सह, रामचंद्र मिश्रा, धर्मेंद्र बबलू, अर्जुन ¨सह, शशिकांत पांडेय, शिवाकांत मिश्रा, दिनेश चौरसिया, संजय ¨सह सोमवंशी, विजय रघुवंशी, भावना ¨सह आदि मौजूद रहे।


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