फंगस के चंगुल में फंस रही जल की रानी
सुलतानपुर : मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है..। मगर ठहरा हुआ पानी अब उनकी जान पर भारी है। घरों
सुलतानपुर : मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है..। मगर ठहरा हुआ पानी अब उनकी जान पर भारी है। घरों में शौकीन मिजाज लोग एक्वेरियम में जिन रंगीन मछलियों को पालते हैं। उन पर सर्दी सितम ढाने की ओर बढ़ चली है। पारा ज्यों-ज्यों लुढ़क रहा है, त्यों-त्यों फंगस बीमारी का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अॅाक्सीजन की कमी के चलते इस जलचर के जीवन पर भी संकट खड़ा हो सकता है।
कुछ लोग वास्तुशास्त्र के चलते, कुछ ज्योतिषीय परामर्श और बड़ी संख्या में लोग शौक के कारण एक्वेरियम को घर, आफिस, प्रतिष्ठान आदि पर सजाते हैं। इनमें विविध प्रकार की मछलियां रखी जाती हैं। नयनाभिराम ²श्य दिखाने वाली रंगीन मछलियां हर कोई पसंद करता है। मगर शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि पानी में ¨जदगी जीने वाली यह जलचर ठहराव वाले पानी में सर्दी के दौर में मुसीबत से जकड़ उठती हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि घटते तापमान में अॅाक्स जन की कमी आ जाती है।
इनसेट.कैसे बचाएं बीमारी से
मत्स्य प्रभारी बीएन तिवारी के मुताबिक बचाव के लिए एक्वेरियम के अंदर पानी में ऑटोमेटिक वाटर हीटर लगाना चाहिए। जिससे पानी का तापमान मछलियों के अनुरूप बना रहता है। ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए इलेक्ट्रिक फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही पोटेशियम परमैगनेट पानी में डालने से फंगस का खतरा कम हो जाता है। रंगीन मछलियों को खाने में ट्यूबीफिक्स, ब्लडवर्म, साइक्लौप्स भी थोड़ी मात्रा में दिन में एक बार ही खिलाना चाहिए। एक्वेरियम का पानी आधा खाली करके पंद्रह दिन में एक बार ताजा भरना जरूरी है।
इनसेट.कोलकता से लाई जाती मछलियां
पहले सिर्फ कोलकता से ही मछलियां मंगाई जाती थीं। तब उसका कोई सब सेंटर नहीं था। मगर एक्वेरियम की बढ़ती मांग के चलते राजधानी लखनऊ में इसका उपकेंद्र स्थापित किया गया है। जहां गप्पी, मोली प्लेटी, गोल्ड फिश, ऐंजिल, जेबरा, रसबोरा, कैट फिश आदि विभिन्न प्रजाति की रंग-बिरंगी मछलियां सहजता से उपलब्ध हो जाती हैं।