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ढूंढ लाया हूं वही गीत मैं तेरे लिए

सुलतानपुर : बहुत कम लोगों का पता होगा कि प्रख्यात गीतकार व शायर मजरूह सुलतानपुरी का असली नाम था असरा

By Edited By: Published: Wed, 25 May 2016 11:52 PM (IST)Updated: Wed, 25 May 2016 11:52 PM (IST)
ढूंढ लाया हूं वही गीत मैं तेरे लिए

सुलतानपुर : बहुत कम लोगों का पता होगा कि प्रख्यात गीतकार व शायर मजरूह सुलतानपुरी का असली नाम था असरार हसन। शुरुआती दौर में हकीमी पढ़कर शहर के पल्टन बाजार में दो जून की रोटी के लिए दवाखाना चलाने वाले मजरूह ने पांचवें दशक में मुंबई का रुख किया और फिर अपने रोमांटिक एवं जज्बाती शेर-ओ-शायरी से ¨हदी सिनेमा में कुछ इस तरह रचे-बसे कि फिर वहीं के होकर रह गए।

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मूलत: जिले के कुड़वार ब्लाक के गजेंड़ी गांव के बा¨सदे रहे असरारउल हसन खान का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को हुआ था। पिता पुलिस महकमे में कांस्टेबल थे। इसलिए पढ़ाई-लिखाई भी गैर जिलों में हुई। उन्होंने अरबी-फारसी भी पढ़ी थी। शेर-ओ-सुखन का शौक असरारुल हसन खान को उर्दू अदब की ओर खींच लाया और वे मजरूह सुलतानपुरी बन गए। मजरूह उपनाम लगाकर वे गीत, गजल व नग्मे लिखने लगे। पल्टन बाजार में वे हकीम का कोर्स करके दवाखाना खोल चुके थे, लेकिन मुशायरों में शिरकत उनका शौक था। स्वभाव से वामपंथी मिजाज के मजरूह ने चंद दिनों में ही ..मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग पास आते गए कारवां बनता गया। आदि शेरों के जरिए उर्दू अदब का मशहूर नाम बन गया और फिर उनके कदम थमे नहीं। पांचवें दशक में मुंबई के कुल¨हद मुशायरे में साहिर लुधियानवी, नौशाद जैसे मशहूर शायर व संगीतकार भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। फिर शुरू हुआ उनका शायर से गीतकार बनने का सफर। .गम दिए मुस्तकिल कितना नाजुक है दिल, जलते हैं जिसके लिए, तेरी आंखों के लिए, तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है, लेके तुझे संग अपने नए-नए रंग लेके सपनों की महफिल में, जलते हैं जिसके तेरी आंखों के दिए, ढूंढ लाया हूं वही गीत मैं तेरे लिए.. से लेकर नए जमाने के गीत, आज मैं ऊपर आसमां नीचे, पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, जैसे करीब साढ़े चार हजार नग्मों की उन्होंने रचना की। केएल सहगल, तलत महमूद, किशोर कुमार, महेंद्र कपूर, मो.रफी, आशा भोंसले, लता मंगेशकर, मुकेश, सुरेश वाडकर, कुमार शानू, गीतादत्त, शमशाद बेगम, अनुराधा पौडवाल, ऊषा खन्ना जैसे सदाबहार गायकों ने उनके गीतों को स्वर दिया और अपनी पहचान मुकम्मल की। उन्हें ¨हदी सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया गया। 25 मई सन 2000 को वे इस संसार से जुदा हो गए।

वीरान पड़ा मजरूह पार्क, आज मनाया जाएगा यौमे वफात

यूं तो मजरूह की याद ताजी करनी हो तो लोग उनके पैतृक गांव गंजेड़ी जाते हैं, लेकिन फिलवक्त उनके खानदान व परिवार का अब कोई नहीं है। सभी परदेशी हो गए हैं। शहर के सिविल लाइन इलाके की अफसर कालोनी में एक अदद मजरूह सुलतानपुरी उद्यान जरूर है, लेकिन वह भी वीरान है। स्थानीय मजरूह एकेडमी ने पचीस मई को तो कुछ नहीं किया, लेकिन 26 मई को नगर पालिका परिसर में यौमे वफात मनाने का फैसला किया गया है। जिसमें अदब से जुड़े लोग उन्हें याद करेंगे।


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