बूढ़ी आंखों को भरोसेमंद लग रहे 'युवा'
रसिक द्विवेदी, सुलतानपुर वे उम्र के छह-सात दशक पार कर चुके हैं। खूब तजुर्बा भी है उन्हें। बड़े-बड़े
रसिक द्विवेदी, सुलतानपुर
वे उम्र के छह-सात दशक पार कर चुके हैं। खूब तजुर्बा भी है उन्हें। बड़े-बड़े बदलाव भी उनकी आंखों के सामने ही हुए हैं। न जाने कितनों पर भरोसा भी किया। छोटे-बड़े चुनाव जितवाए। पर, अब बहुत सजग हैं..वे बुजुर्ग मतदाता। उन्हें अब विकास चाहिए, वह भी पूरी इमानदारी के साथ। चुनावी माहौल में एक-एक वोट पर टकटकी लगाए वृद्ध लोगों की टोली ने प्रधानी चुनाव के पहले चरण में शनिवार को साफगोई से अपने मन की बात कही।
कूरेभार की ग्रामसभा बरौला में मतदान चल रहा था। इसी ग्रामसभा में जय¨सहपुर को जोड़ने वाली सड़क के किनारे छप्पर के नीचे एक चाय कि दुकान में उम्रदराज लोगों की भीड़ जमा थी। वे सब एक-एक मतदाता को आते-जाते निहारते रहे। यहीं पर खड़े सत्तर साल के रामपदारथ तिवारी से पैसठ वर्षीय त्रिवेणी प्रसाद यादव ने सवाल कि..का दादा वोटवा दै आएव, वे वोले हां। केहिका दिहव है..रामपदारथ बोले..ई न बताइब, का गांवै में पिटवैबे हो का। हल्की सी चुहलबाजी के के बाद पूरी जमात गंभीर हुई। कैमरा चमका तो कुछ युवक भी वहीं आकर डट गए। सवाल हुआ कि..आप सबों की बुजुर्ग मंडली यहां बैठी है, वोट दिए कि नहीं? इस पर उन लोगों ने तपाक से जवाब दिया कि सुबह ही मतदान कर दिए थे। यहां बैठे रामूर्ति साहू (70), त्रिवेणी प्रसाद यादव(71), सूर्यनारायण (68) से सवाल हुआ कि प्रधानी में क्या उम्मीद लगाकर वोट दिया है आप लोगों ने? वे बोले..हमारे गांव में सात प्रत्याशी लड़ रहे हैं। तीन हजार की आबादी है। छह प्रत्याशी तो 40 साल से कम उम्र के हैं। कोई बुरा माने या अच्छा हम लोगों ने तय किया है कि युवा के सिर पर ही ताज बांधेंगे। नौजवान भरोसेमंद हैं, उनमें कुछ नया और खास करने का जज्बा है। इसी बीच जगराम, रामदीपक, रामू यादव, रामसेवक, त्रिभुवन यादव (यह सब भी 60-70 के बीच के उम्र के) भी बोल पड़े कि बहुत चुनाव देखा है हम लोगों ने। विकास भी हुआ है हमारे इलाके का। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना है। युवा ही सपनों को साकार करेंगे, ऐसा भरोसा है हम लोगों को। इन लोगों का यह भी कहना था कि युवा जोश से काम करेगा, खाने को नहीं देखेगा, काम देखेगा। इमानदारी दिखाने की पूरी कोशिश करेगा। यहां के लोगों की सबसे बड़ी पीड़ा बिजली, जलभराव और सड़क की बदहाली को लेकर है। बहरहाल बुढ़ापे में लाठी का सहारा तो अमूमन हर कोई चाहता है, शायद वैसी ही चाहत विकास के प्रति भी इन बुजुर्गों की है..तभी तो उनका भरोसा युवाओं पर ही दिखाई पड़ा।