आश्रम, बाबा और विवाद
सुलतानपुर: धर्म की राह तो सद्मार्ग ही होती है। आश्रम और बाबा उसके माध्यम बनते हैं। पर, इन दोनों का व
सुलतानपुर: धर्म की राह तो सद्मार्ग ही होती है। आश्रम और बाबा उसके माध्यम बनते हैं। पर, इन दोनों का विवादों से नाता जुड़ जाए तो उसे क्या कहेंगे ? परिणाम क्या होगा ? इसका प्रत्यक्ष सुबूत संत ज्ञानेश्वर के आश्रम और लगातार हो रहीं घटनाएं हैं। दो दशक पहले मायंग-मझवारा आश्रम से जो खूनी खेल का सिलसिला शुरू हुआ वह अभी थमा नहीं। बाराबंकी में गुरुवार को सिद्धौर आश्रम में हुई हत्या एक बार फिर बीते प्रकरणों की याद ताजा कर गई।
करीब बीस साल पहले सुलतानपुर शहर से पचीस किमी दूर मझवारा गांव में एक बाबा आए थे। धर्म का प्रचार-प्रसार सोचकर ग्रामीणों ने उन्हें स्थान मुहैया कराया। बताया जाता है कि एक छोटा सा आश्रम वहां बना। वह बाबा थे संत ज्ञानेश्वर। आसपास के लोग जुटने लगे और सुबह-शाम धार्मिक अनुष्ठान होने लगे। इसी बीच आश्रम के बगल जमीन के विवाद में चौकीदार की हत्या हो गई। इससे ग्रामीणो का गुस्सा आश्रम पर फूट पड़ा और तहस-नहस कर दिया। इस मामले में बाबा और उनके चेले नामजद हुए। पर, बाबा का कद खाकी पर भारी पड़ा। उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई। हालांकि आश्रम की तलाशी में आपत्तिजनक वस्तुएं मिली थीं। इसके कुछ दिन बाद वर्ष 1999 में आश्रम से चंद कदम की दूरी पर रहने वाले पूर्व विधायक इंद्रभद्र ¨सह की शहर के दीवानी चौराहे के पास बम मारकर हत्या कर दी गई। एक युवक को भीड़ ने दौड़ाकर पकड़ा। उसने बताया कि आश्रम उजाड़ने के विरोध में ही बाबा ने यह वारदात करवाई। खूनी खेल इस घटना के बाद और तेज हो गया। इस बार बाबा निशाने पर थे। महाकुंभ से लौटते वक्त 10 फरवरी 2006 को संत ज्ञानेश्वर के काफिले पर इलाहाबाद के हंड़िया थानाक्षेत्र में हमला हुआ था। जिसमें ज्ञानेश्वर, उनकी शिष्या कुमारी नीलम, कुमारी मिथिलेश, कुमारी पूजा, कुमारी पुष्पा, गंगा व शिष्य ओमप्रकाश तथा रामचंद्र की मौत हो गई थी। आठ मौतों का मुकदमा ज्ञानेश्वर के भाई इंद्रदेव तिवारी ने नामजद दर्ज कराया। घटना के रामसहाय ¨सह गवाह थे। इसी हत्याकांड में पूर्व विधायक इंद्रभद्र ¨सह के दोनों पुत्रों चंद्रभद्र ¨सह सोनू व यशभद्र ¨सह मोनू का नाम पहली बार सामने आया। इसमें गिरफ्तार हुए अखिलेश ¨सह के बयान पर विजय यादव व डब्बू ¨सह अभियुक्त बनाए गए। बाद में डब्बू ¨सह पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। घटना के बाद मोनू सुलतानपुर पेशी पर आए तो अदालत परिसर पर ही उन पर हमले का प्रयास हुआ। बारूद की बेल्ट सहित बहराइच का मदन कुशवाहा गिरफ्तार हुआ। इसके बाद इलाहाबाद जिला अदालत पेशी पर जा रहे सोनू-मोनू पर बम से हमला हुआ। जिसमें रामसहाय ¨सह सहित आठ नामजद हुए। जब अदालत का फैसला आया तो पूर्व विधायक की हत्या में दीनानाथ यादव उम्र कैद की सजा पा गया। संत ज्ञानेश्वर हत्या में सोनू-मोनू बरी हो गए और हमले के मुकदमों में रामसहाय व अन्य भी बरी हो गए। कहानी में यहां से नया मोड़ आया। सूत्रों का कहना है कि फटाफट मुकदमों के फैसले और गवाहों के मुकरने पर बाबा के परम शिष्यों को रामसहाय पर शक होने लगा। इसी बीच नौ जुलाई 2014 को लेखपाल हत्याकांड मे पेशी पर गए मोनू ¨सह पर फिर बम से हमला हुआ। इसमें मोनू तो बच गए पर ज्ञानेश्वर के चेले पकड़े गए और एक की जान भी गई। अभी यह वारदात मायंग से लेकर फैजाबाद तक चर्चा में ही थी कि अवध के तीसरे जिले बाराबंकी में रामसहाय ¨सह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। बहरहाल बीस साल के भीतर आश्रम, बाबा और विवाद में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं। मामलों से जुड़े लोगों की सांसें हमेशा धुकधुकी में रहती हैं। सिलसिला कहां और किस हद तक चलेगा इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है।
इनसेट.मझवारा में सन्नाटा
धनपतगंज : मझवारा स्थित संत ज्ञानेश्वर आश्रम में सन्नाटा पसरा रहा। इक्का-दुक्का लोग दिखे भी तो वे अपने कामों में व्यस्त थे। बाराबंकी के सिद्धौर में हुई घटना से भी कुछ लोग अंजान बने रहे। फोटो करते समय आश्रम के एक व्यक्ति ने विरोध किया ¨कतु बाद में वह भी खेतों की ओर चला गया। ग्रामीणों ने बताया कि ज्यादातर शिष्य सिद्धौर आश्रम चले गए हैं। बाकी दिनों में वहीं से बाबा के अनुयायी आत-जाते रहते हैं।