भागे जरूर, लेकिन हम डरे नहीं
सुल्तानपुर : शहर का पर्यावरण पार्क रविवार की शाम गुलजार था। हर वर्ग की भीड़ थी। बाल-गोपाल खेलकूद में
सुल्तानपुर : शहर का पर्यावरण पार्क रविवार की शाम गुलजार था। हर वर्ग की भीड़ थी। बाल-गोपाल खेलकूद में मस्त तो युवा योगा और चहलकदमी में व्यस्त थे। बुजुर्ग भी बड़ी संख्या में आए थे पर वे आज एक जगह बैठकर बतिया रहे थे। छायाकार ने उनकी फोटो उतारी तो बरबस बोल पड़े भूकंप तो कंपा गया। शायद उन्हें इस बात का एहसास था कि मीडिया भी यही जानने आई है।
रविवार शाम करीब पांच बजे पार्क में बैठे बुजुर्गो से भूकंप के बाबत बात हुई तो लोगों ने साफ कहा कि उन्हें डर नहीं लगा लेकिन सबको भागता देख वे भी भाग निकले। एक वकील साहब व एक सेवानिवृत्त कर्मचारी ने ये जरूर कहा कि हम लोग छत पर जरूर चले गए।
अधिवक्ता ओपी लाल कहते हैं कि शनिवार को जब धरती डोली तो वे अदालत में कुर्सी पर बैठे थे। उनकी कुर्सी हिल उठी, पहले समझे नहीं, फिर ऊपर पंखा भी हीला। अब जान गए थे कि ये भूकंप है। फिर कुर्सी छोड़ निकल लिए। थोड़ी देर बाद परिवारीजनों का फोन आने लगा और कुशलक्षेम जानने लगे।
सीडीओ श्रीकांत मिश्र के पिता वयोवृद्ध बद्री प्रसाद मिश्र से जब भूकंप के बाबत सवाल हुआ तो उन्होंने अपनी भाषा में ही जवाब दिया 'तख्ता पय लेटा रहेन, ऊ हीलै लाग, हमै लाग कि निचवा कौनो जानवर आइ गय, तनिक देर मा खतम होई गवा तब जानेन भूकंप रहा'।
इसी मंडली में बैठे शंभूनाथ श्रीवास्तव कहते हैं कि तेल मालिश कर रहे थे। हाथ हीलने लगा। तब तक किचन में भी बर्तनों के टकराहट सुनाई पड़ी। पत्नी ने आवाज दिया कि बबलू के पापा जग हिल रहा है। तब हम जान गए कि भूकंप आया है और भागकर छत पर चले गए।
चिंतामणि तिवारी बताते हैं कि जब-जब हम चौकी पर बैठे, तब-तब भूकंप आया। बहुत दिन पहले मुगलसराय में नौकरी के दौरान जब चौकी पर बैठे रहन तब भूकंप आया था। यहां शनिवार को हम चौकी पर ही थे और आज भी पेपर पढ़ रहे थे तब जलजला आया। हालांकि आज बहुत हलका था। इसी मंडली में अशोक त्रिपाठी, लालता यादव, राजेंद्र नाथ शर्मा सभी ने जलजले की कहनी अपने शब्दों में बयां की।