..तस्मै श्री गुरुवै नम:
रसिक द्विवेदी, सुल्तानपुर गुरु को भगवान से भी ऊपर माना जाता है। वह ऐसे ही नहीं। गुरु करते ही ऐसा
रसिक द्विवेदी, सुल्तानपुर
गुरु को भगवान से भी ऊपर माना जाता है। वह ऐसे ही नहीं। गुरु करते ही ऐसा हैं..तभी उन्हें यह ओहदा हासिल है। शनिवार को भूकंप के झटके आए तो एक बार फिर अध्यापक-अध्यापिकाओं ने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया। उन्होंने बच्चों को अकेला नहीं छोड़ा। बड़े ही सहज भाव से बच्चों को स्कूलों से बाहर खुले स्थानों पर निकाल लाए। स्कूलों से इतर ऐसा माहौल कहीं नहीं दिखा। अस्पताल में डॉक्टर पहले भागे..मरीजों को उनके तीमारदार लेकर बाहर आए। कमोवेश यही हालात हर जगह दिखा। अधिकारी-कर्मचारी हो या प्रतिष्टान स्वामी या फिर निजी कार्यालयों का हर जगह लोग अपने प्राण बचाने एक दूसरे को पीछे छोड़ते खुले स्थानों की ओर भागे, लेकिन स्कूलों में ऐसा मंजर नहीं दिखा। धैर्य पूर्वक अपने बच्चों को साथ लेकर विद्यालयों से गुरुजन बाहर निकले।
शनिवार को पूर्वाहन 11 बजकर 42 मिनट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए। सब जगहों पर अफरा-तफरी मच गई। अस्पताल, सरकारी कार्यालय, निजी संस्थान, प्रतिष्ठान सब जगहों पर हाय-तौबा मच गई। कहीं भगदड़ तो कहीं दहशत का मंजर दिखाई पड़ा। लोग सोचने लगे कि भगदड़ के दौरान कोई बड़ी घटना न हो जाए। ऐसे में सबका ध्यान स्कूलों की ओर गया, जहां हजारों बच्चों एक साथ दौड़ाते-भागते-खेलते व पढ़ते हैं। यह ²श्य देखने स्कूल की रुख किया गया तो वहां जो दिखा वो वाकई में गुरुजनों की महिमा का बखान करने वाला नजारा था। राधा रानी कुंवर कृष्ण बालिका इंटर कॉलेज में छात्राओं को अध्यापिकाएं बड़े ही सामान्य और सहज तरीके से स्कूल परिसर से ही लाइन में लगवाकर बाहर ले आईं। इस दौरान छात्राओं के चेहरे पर डर तो साफ दिख रहा था पर, अपनी टीचर्स के साये में वे खुद को महफूज महसूस कर रहीं थीं। गोपाल पब्लिक स्कूल, केएनआइसी, सेंट जेवियर्स, महर्षि विद्यामंदिर, सरस्वती विद्यामंदिर आदि कई मंजिला भवन वाले स्कूल हैं। इनमें से कई स्कूलों में तो आंतरिक ध्वनि विस्तारक यंत्र (माइक) द्वारा बच्चों को प्रार्थना स्थल में लाया गया। इसके बाद छुट्टी कर दी गई। प्रबंधन में तो आपाधापी दिखी पर, बच्चों में उसका प्रकटीकरण नहीं होने दिया गया, यही कारण था कि कोपल मन वाले बच्चों की भीड़ में भी भगदड़ की स्थिति नहीं आई।