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गूंजने लगी या हुसैन, या हुसैन की सदाएं

सुल्तानपुर : इमाम हुसैन व उनके बहत्तर साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम के मौके पर मजलिसों के आयोज

By Edited By: Published: Mon, 27 Oct 2014 10:05 PM (IST)Updated: Mon, 27 Oct 2014 10:05 PM (IST)

सुल्तानपुर : इमाम हुसैन व उनके बहत्तर साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम के मौके पर मजलिसों के आयोजन शुरू हो गए हैं। नगर व कस्बों में जंग-ए-कर्बला को याद कर मजलिसों में तकरीरें हो रही हैं।

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शहर के अमहट, खैराबाद, सिविल लाइन आदि क्षेत्रों में मुहर्रम की दूसरी तारीख को इमामबाड़ों में मजलिस के आयोजन हुए। जिसमें धार्मिक विद्वानों ने जंग-ए-कर्बला को न्याय के लिए लड़ा गया संघर्ष बताया। देर रात तक अमहट में मजलिसों के दौर चलते रहे। लम्भुआ संवादसूत्र के अनुसार जामे मस्जिद गौसिया के तत्वावधान में हाजी इमाम अली कादिरी की सरपरस्ती में दस दिवसीय जिक्र-ए-शोहदाए-कर्बला का आयोजन किया गया है। जिसमें रोजाना रात पौने आठ बजे से दस बजे तक तकरीरें हो रही हैं। इमाम मौलाना अख्तर रजा ने बताया कि दस दिनों तक विभिन्न प्रसंगों पर तकरीर होंगी। दसवीं मुहर्रम को सुबह दस बजे से बारह बजे तक शहादत के बाद के वाकयात बयां किए जाएंगे। हाजी अब्दुल रशीद शाह ने शीरिनी का इंतजाम किया है। हाफिज दीन मोहम्मद ने बताया कि गांव में ताजिया नहीं बनाया जाता है। आला इमाम अहमद रजा के मानने वाले बंदे जिक्रे-शोहदाए-कर्बला में शिरकत करते हैं। बरेहता, देवरी, खुदौली, किठौली, बेदौली आदि गांवों में ताजिया बनाया जाता है। लम्भुआ कस्बे में ताजिए के साथ ढोल, ताशा, ड्रम के रूप में अखाड़ा और मातम व मर्सिया भी किया जाता है।


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