आखिर कब होगी बेटियों को बचाने की कवायद
सीतापुर : बीते सालों के दौरान ¨लगानुपात में आया अंतर यह साबित करने को पर्याप्त है कि बेटियों की ता
सीतापुर : बीते सालों के दौरान ¨लगानुपात में आया अंतर यह साबित करने को पर्याप्त है कि बेटियों की तादात में लगातार कमी आ रही है। ¨लगानुपात के ताजा आंकड़े हालातों की भयावहता को बयां करने को पर्याप्त हैं। इन आंकड़ों ने समाज शास्त्रियों के माथे पर ¨चता की लकीरों को और भी गहरा कर दिया है। जानकार इसकी सबसे बड़ी वजह कन्या भ्रूण हत्या और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बने पीसी पीएनडीटी एक्ट अर्थात प्रसव पूर्व निदान तकनीक (विनियमन एवं दुरूपयोग निवारण अधिनियम-1994) के सही अनुपालन न होने को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि कन्या भ्रूण हत्या करने वाला संगठित गिरोह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बने कानून को खुलेआम ठेंगा दिखाने का काम कर रहा है। जिससे इस एक्ट की सार्थकता और उपयोगिता पर अब सवालिया निशान लगने लगा है।
एमटीपी एक्ट की आड़ में चल रहा खेल
गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य परीक्षण को लेकर अल्ट्रासाउंड कराने की छूट (एमटीपी एक्ट) मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्रेंसी एक्ट 1971 के तहत मिली हुई है। इस एक्ट में गर्भ में पल रहे भ्रूण किसी बीमारी से ग्रसित है या किसी दुर्घटना का शिकार होकर भ्रूण में इंजरी हो जाए, बलात्कार के बाद गर्भवती हुई महिला को परीक्षण कराकर सुरक्षित तरीके से कानूनी कार्रवाई के तहत गर्भपात की छूट दी गई है। गर्भ में पल रहे शिशु की बीमारी एवं उसकी स्थिति का पता लगाने की आड़ में ¨लग परीक्षण का खेल चल रहा है।
सजा के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट
पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत यदि कोई यह प्रचार-प्रसार करता है कि वह लड़का, लड़की का गर्भ में परीक्षण कर जानकारी देता है, तो एक्ट के तहत प्रावधान किया गया कि जांच करने वाले के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई कर तीन वर्ष की सजा एवं दस हजार का जुर्माना हो सकता है। इस एक्ट को वर्ष 2003 में संशोधित किया गया, जिसके तहत ¨लग निर्धारण करते हुए पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की सजा एवं 50 हजार का जुर्माना लगाया जाए। दूसरी बार पकड़े जाने पर पांच वर्ष की जेल एवं एक लाख रुपये का अर्थ दंड निर्धारित किया गया है।
क्या है पीएनडीटी एक्ट
गर्भस्थ मादा भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराई को मिटाने के उद्देश्य से वर्ष 1994 से पीएनडीटी एक्ट की परिकल्पना कर 01 जनवरी 1996 में इसे पूरे देश में लागू किया गया। इस अधिनियम के सेक्शन 6 के अनुसार कि सी भी तरह से गर्भस्थ शिशु के ¨लग की जांच करना एवं उसका परिणाम बताना गैर कानूनी है।
विशेषज्ञ की राय
पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत गठित एडवायजरी कमेटी की अध्यक्ष व जिला महिला चिकित्सालय की अधीक्षिका डॉ. सुषमा कर्णवाल का कहना है कि प्राकृतिक तौर पर प्रति एक हजार बालकों पर 954 बालिकाओं को जन्म लेना चाहिए, लेकिन देश भर के आंकड़े इससे भिन्न हैं, जिसका सीधा सा मतलब है कि गर्भ में पलने वाली बेटी को गर्भ में ही मारकर हम उसके जीने का अधिकार भी छीन रहे हैं। मजबूत इच्छा शक्ति के अभाव के चलते इस कुरीति पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
यह है बाल ¨लगानुपात
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